१२४६ मिनबंधु-विनोद ( २३४१) के डरिक पिनकाट इनका जन्म संवत् १८९३ में, इंगलैंड देश में, हुआ, और वहीं ये । प्रायः अपने जीवन पर्यंत रहे । पर भारतीय भाषाओं पर आपका __ इतना प्रेम था कि आर्थिक दरिद्रता होते हुए भी आपने संस्कृत, __ उर्दू, गुजराती, बँगला, तामिल, तैलंगी, मलायलम, और कनाड़ी भाषाएँ सीखीं । अंत में इनको हिंदी से भी प्रेम हुआ और इसे सीखकर इनका अन्य भाषाओं से प्रेम इसके माधुर्य के प्रागे फीका पड़ गया। इन्होंने हिंदी में सात पुस्तके संपादित की, जिनमें कुछ इन्हीं की बनाई हुई भी थीं। आपने यावजीचन हिंदी का हित और हिंदी लेखकों का प्रोत्साहन किया । अंत में संवत् १९५२ में ये भारत को पधारे, पर इसी संवत् के फरवरी में इनका शरीर-पात लखनऊ में हो गया। श्राप हिंदी के अच्छे जाननेवालों में से थे। (२३४२) अंबिकादत्त व्यास साहित्याचार्य इनका जन्म संवत् १६१५ चैत्र सुदी ८ को जयपुर में हुआ था। ये महाशय गौड़ ब्राह्मण थे और काशी इनका निवासस्थान था। संस्कृत के थे अच्छे विद्वान् थे, और यावज्जीवन पाठशालाओं एवं कॉलेजों में संस्कृत पढ़ाने का काम करते रहे। इनके अंतिम पद का वेतन १००) मासिक था। अपनी नौकरी के संबंध से ये महाशय विहार में बहुत रहे । इनका स्वर्गवास संवत् १६५७ में हुआ। ये महाशय संस्कृत तथा भाषा गद्य-पद्य के अच्छे लेखक थे, और इन्होंने चार नाटक-ग्रंथ भी बनाए हैं । यत्र-तत्र इन्हें बहुत-से प्रशंसापत्र तथा उपाधियाँ मिली, और इनकी आशुकविता की भी सराहना हुई। इन्होंने संस्कृत और हिंदी मिलाकर ७८ ग्रंथ निर्माण किए हैं, जिनके नाम सन् १६०१चाली सरस्वती के पृष्ट ४४४ पर लिखे हैं । ललिता नाटिका, गोसंकट नाटक, मरहट्टा नाटक, भारतसौभाग्य नाटक, भाषाभाष्य, गद्यकाव्य-मीमांसा, विहारी-विहार, विहारीचरित्र, शीघ्र-