पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३१९

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१२१० . मिनबंधु-विनोद यह श्रायु गई सब हाय बृथा गर सेली लगी न नवेली लगी ॥३॥ (२३४६) त्रिलोकीनाथजी, ( उपनाम भुवनेश कवि) ये महाशय शाकद्वीपी ब्राह्मण महाराजा मानसिंह अयोध्या-नरेश के भतीजे थे। महाराजा मानसिंह के पुत्र अवस्था में स्वर्गवास होने पर उनके दौहित्र महाराज सर प्रतापनारायण महामहोपाध्याय और इनसे राज्यप्राप्त्यर्थ बहुत बड़ी लड़ाई अदालतों में हुई, जिसमें इनको पराजय हो गई । ये महाशय भाषा के अच्छे कवि थे और इन्होंने पहले चाणक्यनीति का एकादश अध्याय पर्यंत भाषा छंदों में अनुवाद किया, और फिर संवत् १९३७ में भुवनेशभूषण- नामक ५० पृष्ठों का स्फुट श्रृंगार कविता का एक स्वतंत्र ग्रंथ बनाया। इस ग्रंथ के अंत में कुछ चित्र कविता भी की गई है। भुवनेश- विलास, भुवनेशअंकप्रकाश, भुवनेशयंत्रप्रकाश-नामक इनके और ग्रंथ हैं । इनके भाई नरदेव, लक्ष्मीनाथ और तारानाथ भी कवि थे । इनके कुटुंब में और दो-तीन महाशय भी काव्य-रचना करते थे। इनके पितृन्य महाराजा मानसिंहजी उपनाम द्विजदेव अच्छे कवि हो गए हैं । भुव- नेशजी का स्वर्गवास हुए करीब ३७ वर्ष के हुए हैं। इनके ग्रंथों का एवं इनके कुटुंबियों के कवि होने का हाल भुवनेशभूषण ग्रंथ में इन्होंने लिखा है। इन्होंने ब्रजभाषा में कविता की है, जो सरस और मनोहर है। हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करते हैं । उदाहरणार्थ इनका केवल एक छंद नीचे लिखा जाता है- कर कंज केवार पै राजि रहे छहरी छिति लौं छुटिकै अलकैं; अंगिराति जम्हाति भली बिधि सों अधनैननि श्रानि परी पलकें। भुवनेशजू भापे बनै न कछू मुख मंजुल अंबुज से झलक मनमोहन नैन मलिंदन सों रस लेतन क्यों कढ़िकै कलक। (२३४७) डॉक्टर सर जी० ए० ग्रियर्सन सी० आई० ई० इनका जन्म विलायत में, संवत् १९१३ में, हुआ था। श्राप सिविल-