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मिश्रबंधु

सं० १९६६ . उत्तर नूतन ३७७. हैं। आप वर्तमान काल के प्रायः सर्वोत्कृष्ट गध-लेखक है। आपकी भाषा संस्कृतपन का सहारा न लेते हुए भी खूब ज़ोरदार है, तथा भाव सबल और मनोरंजक हैं। नाम--(३६३५ ) मथुराप्रसाद बाजपेयी, सराय मालीखाँ, लखनऊ-निवासी। जन्म-काल-सं. १६४४। आपने स्वदेश-प्रेम-संबंधी विषयों पर बहुत-से अच्छे छंद लिखे हैं । श्राप हमारे भागनेय और सुकवि हैं। उदाहरण भारत के नौनिहालो, अाशा बड़ी जगी है कुछ काम कर दिखा दो, गांधी कि लौ लगी है। खद्दर क वस्त्र तन में, सीना खुला हो रन में; गोली चले सनासन, हिंसा न होय मन में। आगे को डग बढ़ा दो, अंगद-समान परा हो सुस्क्यान मुख सनोहर, मोहन कि जीत तय हो। नाम-(३६३६ ) महावीरप्रसाद श्रीवास्तव, बी० एस-सी०, रायबरेली। जन्म-काल-सं० १९४४। जन्म-स्थान-ग्राम बिझौली, तहसील हंडिया, जिला इलाहाबाद। ग्रंथ-(१) विज्ञान-प्रवेशिका ( दो भाग), (२) गुरुदेव के साथ यात्रा (पूर्वाद्ध), (३) समुद्र की सैर (बँगला के 'सागर-रहस्य'- नामक पुस्तक का अनुवाद), ( ४ ) सूर्य-सिद्धांत का विज्ञान भाष्य (मूल संस्कृत के ग्रंथ का अनुवाद), (५) स्फुट वैज्ञानिक लेख । विवरण--आप श्रीवास्तव कायस्थ मुंशी शिवबदनलालजी के पुत्र हैं । आपने अपनी शिक्षा कायस्थ-पाठशाला तथा स्योर-सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद में प्राप्त की। इन्होंने अपने ग्रंथों तथा लेखों द्वारा 3