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मिश्रबंधु

सं० १९७२ उत्तर नूतन ( रामायणाष्टक), (८) होली-बहार, () कृष्ण-लीला, (१०) कंस-वध, (११) कपोत-चरित्र, (१२) राजनीति, (१३) लक्षण- (संग्रह, (१४) अवंत-भजनावली, (१५) कृष्ण जन्माष्टक, (१६) रामायण-बहार। प्रकाशित-(५) कविता-केलि, (२) कविता-कुसुम, (३) गोरक्षण। विवरण-यह सहारिया गोत्रीय मुंशी जगतबिहारीलाल के पुत्र हैं। आप प्रसिद्ध औपन्यासिक हैं, और बज-भापा तथा खड़ी बोली दोनो में स्तुत्य कविताएँ करते हैं । उदाहरण-- जहाँ बना आवास कभी था, रहते थे सुख अरू आनंद, जहाँ प्रेममय हास कभी था, होता था विलास स्वच्छंद । जहाँ स्वर्ग की माया भी वस, करती थी नित नूतन नृत्य ; पा करके संकेत तनिक-सा, जहाँ दौड़ पड़ते थे भृत्य । जिसमें बड़े-बड़े नृप करते थे सदैव आहार-विहार ; यश-वैभव दुनिया का सारा जहाँ देखता था संसार । जहाँ कभी थी स्वर्ग-अप्सरा सजती नए-नए भंगार , वही स्वर्ग-सा सदन पड़ा है सूना, करता हाहाकार ! चलती थी अति प्रीति-पगी-सी जहाँ प्रेम में मग्न पवन ; वहीं आज भी खड़ा सुनाता अपनी गाथा भग्न भवन । नाम-( ३६७०) खंजनसिंह, करौंदी, जिला उन्नाव। जन्स-काल-सं० १९४७ । नाम---( ३६७१) गंगाप्रसाद श्रीवास्तव ( जी० पो० श्रीवास्तव)। जन्म-काल-सं० १९४७ । ग्रंथ-(१) लंबी दाढ़ी, (२) उत्तट-फेर, (३) मर्दानी औरत,