पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७१
७१
मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण

रचना-काल-सं० १८१२ ।
विवरण-आप जैन-संप्रदाय के थे।

नाम-(८६६) दुर्गेश्वर, खंभायतपुर (गुजरात)। रचना-काल-सं० १८१४। ग्रंथ-साहित्य-सिंधु । विवरण-उक्त ग्रंथ की रचना प्रथम गुजरात-प्रांतांतर्गत पट्टीदार आम के निवासी वेनीदास कवि ने प्रारंभ की थी, किंतु खंभात के नवाब के साथ युद्ध छिड़ जाने और इस युद्ध में इनका शरीर-पात हो जाने से ग्रंथ अपूर्ण रह गया । कहा जाता है, कवि बेनीदास की स्त्री ने अपने पति की पवित्र स्मृति के उपलक्ष में उक्त ग्रंथ को आपके द्वारा पूर्ण कराया । श्राप जाति के ब्राह्मण थे। ग्रंथ बहुत बड़ा है, और संस्कृत-ग्रंथों के आधार पर बनाया गया है। ग्रंथ में प्रायः एक हज़ार श्लोकों का समावेश किया गया है। निम्नलिखित छंद से ग्रंथ तथा उसके रचयिता का परिचय मिलता है- खंभायतपुर-वासी दुज दुरगेसर को मान दे बुलाई ग्रंथ बनवायो नयो है उनै नथ रह्यो मौत भयो बेनीदास जू को, मुकति को देन तहाँ ग्रंथ चित लयो है। पीछे गंगाजत-सी पवित्र ताकी बनिता ने पिय सुख देनहित ग्रंथ यह दयो है; संवत अठारह चतुरदस नौमी रविवार ग्रंथ संपूरन भयो है। नाम-(८) दयावाई। ग्रंथ-(१) दयाबोध, (२) विनयमालिका । रचना-काल-सं० १८१५ के लगभग । -- . चैत मास, .