पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१२९

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मुद्राराक्षस नाटक तिमि चाणक्यहु पाइ दुख एक प्रतिज्ञा पूरि। अब दूजी करिहै न कछु निज उधम मद चूरि॥ राक्षस-ऐसा ही होगा मित्र शकटदास! जाकर करभक को डेरा इत्यादि दो। शकटदास-जो प्राज्ञ । (करभक को लेकर जाता है) राक्षस-इस समय कुमार से मिलने की इच्छा है। मलयकेतु-आगे बढ़कर ) मैं आप ही से मिलने को पाया है। . राक्षस-(आसन से उठकर ) अरे कुमार ! श्राप ही आ गए, - आइए, इस आसन पर बैठिए। मलयकेतु-मैं बैठता हूँ, आप बिराजिए । (दोनों बैठते हैं) मलयकेतु-इस समय सिर की पीड़ा कैसी है ? राक्षस-जब त कुमार के बदले महाराज कहकर भापको.२०० नहीं पुकार सकते तब तक यह पीड़ा कैसे छूटैगी? मलयकेतु-आपने जो प्रतिज्ञा की है तो सब कुछ होइगी। परन्तु सब सेना सामंत के होते भी अब भाप किस बात का आसरा देखते हैं ? राक्षस-किसी बात का नहीं, अब चदाई कीजिए ! मलयकेतु-अमात्य ! क्या इस समय शत्र किसी संकट में है ? राक्षस--बड़े। मलयकेतु-'कस संकट में ? राक्षस-मंत्री-संक्ट में। कलयकेतु-मंत्री संकट तो कोई संकट नहीं है। २१० राक्षस-और किसी राजा को न हो तो न हो, पर चंद्रगुप्त को तो अवश्य है। मलयकेतु-आर्य ! मेरी जान में चंद्रगुप्त को और भी नहीं है। राक्षस-आपने कैसे जाना कि चंद्रगुप्त का मंत्री-संकट संकट