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पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२५१

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२८ क्योंकि जिसके नीति-धुरंधर तथा निडर गुरु सर्वदा जाप्रव हते हैं (अर्थात् राज्यकार्य मे दत्तचित हैं), वे सब करने में मूल में 'हम' के स्थान पर 'मेरे समान है। काव्यलिंग और द्वादि व्यापार न रहते जयलाभ प्रकट करने से विमावना प्रलंकार है। १५७-८-बाल्यावस्थाही से जिसके भावी उदय का अनुमान हो रहा था वह बाल गज यूयाधिप के समान राज्यारूढ़ हो गया है। • चंद्रगुप्त को बाल गज से उपमा दी गई है। यूथाधिए-हाथियों के झुड का सब से अधिक बलवान मत्त हाथी। १६१-२-जव नीति-परायण आप और गुरु जो दोनों ही (राज विता में ) जागरुक हैं तब आप ही कहें कि इस संसार में ऐसा कौन है जिसे हमने पराजित नहीं किया। राक्ष के मुख से विजयाशीर्वाद सुनकर चंद्रगुप्त विनय के साथ दिखला रहे हैं कि आपको विजय करने से हम जगद्विजयी हो गए। 4. काव्यलिंग और तुल्ययोगिता अलकार है।

१६७००-योग्य राजा का मंत्री होकर मुर्खबुद्धि को भी यश

था नाम दोनों की प्राप्ति होती है (और यहाँ तो स्वामी और मंत्री दोनों ही नीतिनिपुण हैं ) पर नोतिज्ञान-संपन्न मंत्री अयोग्य सजा के अधीन होकर नदी के तटस्थ जल से कटे हुए शीर्णाश्रय वृक्ष के समान गिरते हैं। कोष्ठक का अंश अनुबाद में अधिक है। उसके न रहने से चाणक्य को मूर्ख बनाने को द्वेषबुद्धि का तथा प्रात्मश्लाघा का दोष राक्षस पर आरोपित किया जा सकता है पर अनुवादक ने वह वाक्य रख कर उसका परिहार कर दिया।

सामान्य कथन से विशेष इष्ट होने के कारण अप्रस्तुत

प्रशंसालंकार है। सामान्य से विशेष का साधर्म्य होने से अर्थान्तरन्यास