पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०४ मुद्राराक्षस नाय -माला लपेट कर घंटा और माँझ पाते हैं। एक वर्ण का आदेश दूसरे वर्ण की स्त्री ब्याह नहीं सकता है और पेशा भी दूसरे का। इख्तियार नहीं कर सकता है। हिन्दू घुटने तक जा पहनते हैं। और शिर और कंधों पर कपड़ा * रखते हैं । जूने उनका विरंग के चमकदार और कारचोबी के होते हैं। बदन पर अकसर गह। रहते हैं, भौं मिहदो से रगते हैं और दाढ़ी मूछ पर खिजाब करते। हैं। छतरी सिवाय बड़े आदमियों के और कोई नहीं जा सकता। रथों में लड़ाई के समय घोड़े और मञ्जिल काटने लिये बैल जो जाते हैं। हाथियों पर भारी जजि झूज डालते हैं। सड़कों का मरम्म होती है। पुलिस का अच्छा इन्तजाम है। चद्रगुप्त के तशकर में औसत चोरी सीस रुपये रोज से जियादा नहीं सुनी जाती है । राजा जमीन की पैदावार से चौथाई लेता है। ___चंद्रगुप्त सन् ई० के ६१ बरस पहले मरा। उसके बेटे बिंद। सार के पास यूनानी एचची दयोमेकस ( Diamachos) आया। था परंतु वासुपुराण में, उनका नाम भद्रसार और भागवत में बारिसार और, मत्स्यपुराण में शायद बृहद्रथ लिखा है। केवल । विष्णुपुराण बौद्ध ग्रन्थों के साथ विंदुसार बतलाता है । उसके। १६ रानो थीं और उनसे १०१ लड़के, उनमें अशोका जो पीछे से । "धर्म अशोक" कहलाया, बहुत तेज था, उज्जैन का नालिम था। वहाँ के एक सेठ, की लड़की देवी उससे व्याही थी। उसी से , महेन्द्र लड़का और संघमित्रा (जिसे सुमित्रा भी कहते हैं ) लड़की । हुई थी।

ते

EB953 ALLAHABAR

  • अर्थात् पगड़ी दुपट्टा।

+ जैनियों के ग्रंथों में इसी का नाम अशोक श्री लिखा है।

  • सेठ श्रेष्ठ का अपभ्रंश है, अर्थात् जो सब से बड़ा हो।