चंद्रगुप्त इस समय चाणक्य के साथ था। शकटार अपने दुःव और पापों से संतप्त होकर निविड़ बन में चला गया और अनशन करके प्राण त्याग किये। कोई कोई इतिहास लेखक कहते हैं कि चाणक्य ने अपने हाथ से शस्त्र द्वारा नंद का वध किया और फिर क्रम से उसके पुत्रों को भी मारा, किन्तु इस विषय का कोई हह प्रमाण नहीं । चाहे जिस प्रकार से हो किया। एक दिन शिकार खेलने में गङ्गा में राजा ने अपनी पाँचों उँगलियों की परछाई वररुवि को दिखलाई। वररुचि ने अपनी दो उँगलियों की परछाई ऊपर से दिखाई जिससे राजा को हाथ की परछाई छिप गई । राजा ने इन संज्ञानों का कारण पूछा। वररुचि ने कहा-आपका यह प्राशय था कि पाँव कनुष्य मिलाकर सन्न कार्य साध सकते हैं। मैंने यह कहा कि जो दो विच एक हो जाय तो पाँच का बल व्य है। इस बात पर राजा ने वररुचि की बड़ी स्तुति की। एक दिन राजा ने अपनी रानी को एक ब्राह्मण से खिड़की में से बात करते देख कर उस ब्राह्मण को मारने की प्राशा किया, किन्तु अनेक कारणों से वह बच गया। वररुचि ने कहा कि आपके सब महल की यही दशा है और अनेक स्त्रो वेषधारी पुरुष महल में रहते हैं और उन सबों को पकड़ कर दिखला दिया और इसीसे उस ब्राह्मण के प्राण बचे। एक दिन योगानंद की रानी के एक चित्र में, जो महल में लगा हुश्रा वा, वररुचि ने जांध में तिल बना दिया। योगानंद को गुप्त स्थान में वररुचि के तिल बनाने से उस पर भी सन्देह हुआ और शकटार को आशा दिया कि तुम वररुचि को आजही रात को मार डालो। शकटार ने उसको अपने घर में : लिषा रक्खा और किसी और को उसके बदले मारकर उसका मारना प्रकट किया । एक बेर राजा का पुत्र हिरण्यगुप्त जंगल में शिकार खेलने गया था, वहाँ रात को सिंह के भय से एक पेड़ पर चढ़ गया। उस वृक्ष पर एक भालू था, किन्तु इसने उसको अमय दिया। इन दोनों में यह बात ठहरी कि आधी रात तक कुँवर सोवे मालू पहरा दे, फिर मालू. सोवे कुवर पहरा दें। मालू ने अपना मित्र धर्म निबाहा और सिंह के बहकाने पर भी कुँवर की रक्षा की किन्तु अपनी पारी में कुँवर ने सिंह के बहकाने से भालू को ढकेलना
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