पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१६९

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१५४ मुद्रा-राक्षस पानी । राज करौ सुख सों तबलौं निज पुत्र औ पौत्र समेत सयानी । पालौ प्रजागन को सुख सों जग कीरति गान करें गुन गानी ॥१०॥ कलिंगड़ा-लहौ सुख सब विधि भारतवासी। विद्या कला जगत की सीखौ तजि आलस की फाँसी। अपनो देश धरम कुल समुझहु छोड़ि वृत्ति निज दासी। उद्यम करिकै होहु एक मति निज बल बुद्धि प्रकासी॥ पंचपीर की भगति छाडि कै है हरि- चरन उपासी । जग के और नरन सम येऊ होउ सबै गुनरासी ।।