पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/२८

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पूर्व-कथा

चन्द्रगुप्त इस समय चाणक्य के साथ था। शकटार अपने दुःख और पापो से सन्तप्त होकर निविड़ बन में चला गया और अनशन करके प्राण त्याग किये। कोई-कोई इतिहास लेखक कहते हैं कि चाणक्य ने अपने हाथ से शस्त्र द्वारा नन्द का वध किया और फिर क्रम से उसके पुत्रों को भी मारा, किन्तु


की रानी के एक चित्र में जो महल में लगा हुआ था, बररुचि ने जाँघ मे तिल बना दिया । योगानन्द को गुप्त स्थान में बररुचि के तिल बनाने से उस पर भी सन्देह हुआ और शकटार को आज्ञा दी कि तुम बररुचिको आज रात ही रात को मार डालो । शंकटार ने उसको अपने घर में छिया रक्खा और किसी और को उसके बदले मार कर उसका मारना प्रकट किया। एक वेर राजा का पुत्र हिरण्यगुप्त जङ्गल में शिकार खेलने गया था, वहाँ रात को सिंह के भय से एक पेड़ पर चढ़ गया। उस वृक्ष पर एक भालू था, किन्तु उसने इसको अभय दिया। इन दोनों में यह बात-ठहरी कि आधी रात तक कुँवर सोवे भालू पहरा-दे, फिर भालू सोवे कुंवर पहरा दें। भालू ने अपना मित्र-धर्म निवाही और सिंह के बहकाने पर भी कुंवर की रक्षा की। किन्तु - अपनी पारी में कुंवर ने सिंह के बहकाने से भालू को ढकेलना चाहा, जिस पर उसने जागकर मित्रता के कारण कुवर को मारा तो नहीं किन्तु कान में मूत दिया, जिससे कुवर गूंगा और बहिरा हो गया । राजा को बेटे की इस दुर्दशा पर बड़ा सोच हुअा और कहा कि बररुचि जीता होता तो इस समय उपाय सोचता । शकटार ने यह अवसर समझ कर राजा से कहा कि बररुचि जीता है और लाकर राजा के सामने खड़ा कर दिया। बररुचि ने कहा-कुंवर ने मित्र द्रोह किया उसका फल है । यह वृत्त कहकर उसको उपाय से अच्छा किया। राजा ने पूछा तुमने यह वृतान्त किस तरह जाना ? बररुचि ने कहा-योग- बल से जैसे रानी का तिल । (ठीक यही कहानी राजाभोज, उसकी रानी भानु-