में निमग्न था। इम समाधिस्थ अवस्था में यदि उसने निर्जीव मेघ को दूत कल्पना किया ना कोई ऐसी बात नहीं कि जो समझ में न आ सके। कवि का काम वैज्ञानिक के काम से भिन्न है। वैज्ञानिक प्रत्येक पदार्थ को उसके यथार्थ रूप में देखता है। परन्तु यदि कवि ऐसा करे तो उसकी कविता का सौन्दर्य, प्रायः सारा का सारा विनष्ट हो जाय। कवि को आविष्कर्ता या कल्पक समझना चाहिए। उनकी सृष्टि ही दूसरी है। वह निर्जीव को सजीव और सजीव को निर्जीव कर सकता है। अतएव मध्य-भारत से हिमालय की तरफ़ जाने वाले पवन-प्रेरित मेघ को सन्देश-वाहक बनाना अनुचित नहीं। फिर एक बात और भी है। कवि का यह आशय नहीं कि मेघ सचमुच ही यन्त्र का सन्देश ले जाय: उसने इस बहाने विप्रयुक्त वक्ष की अवस्था का वर्णन-मात्र किया है और उसके द्वारा यह दिखाया है कि इस तरह के सच्चे वियोगी प्रमियों के हृदय की क्या दशा होती है। उन्हें कैसी कैसी बातें सूझती हैं, और उन्हें अपने प्रेमपात्र तक अपना कुशलवृत्त पहुँचाने की कितनी उत्कण्ठा होती है।
किसी का सन्देश पहुँचा कर उसकी पत्नी की प्राणरक्षा करना
पुण्य का काम है। सजन ऐसे काम खुशी से करते हैं। क्यांकि संसार में परोपकार की बड़ी महिमा है। उसे करने का मौका मेघ को मिल रहा है। फिर भला क्यों न वह यक्ष का सन्देश ले जाने के लिए राजी होता। रामगिरि से अलका तक जाने में विदिशा, उज्जयिनी, अवन्ती, कनखल, रेवा, सिप्रा, भागीरथी, कैलास आदि नगरों नदियों और पर्वतों के रमणीय दृश्यों का वर्णन कालिदास ने किया है। उन्हें देखने की कि उत्कण्ठा होगी? कौन ऐसा हृदयहीन होगा