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पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/४

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भूमिका

कालिदास-प्रणीत मेघदूत के सम्बन्ध में, अगस्त १९११ की "सरस्वती" में, एक लेख प्रकाशित हो चुका है। उसमें मेघदूत की विशेषताओं की आलोचना है। वह इस छोटी सी पुस्तक की भूमिका का काम अच्छी तरह दे सकता है। हम लेख का अधिकांश यहाँ पर नीचे उद्‌धृत करते हैं—

कविता-कामिनी के कमनीय नगर में कालिदास का मेघदूत ऐसे भव्य भवन के सदृश है जिसमें पद्यरूपी अनमोल रत्न जड़े हैं। ऐसे रत्न, जिनका मोल ताजमहल में लगे हुए रत्नों से भी कहीं अधिक है। ईंट और पत्थर की इमारत पर जल-वृष्टि का असर पड़ता है, आँधी-तूफान से उसे हानि पहुँचती है, बिजली गिरने से वह नष्ट-भ्रष्ट भी हो सकती है। पर इस अलौकिक भवन पर इनमें से किसी का कुछ भी ज़ोर नहीं चलता। न वह गिर सकता है, न घिस सकता है, न उसका कोई अंश टूट ही सकता है। काल पाकर और इमारतें जीर्ण होकर भूमिसात् हो जाती हैं; पर यह अद्‌भुत भवन न कभी जीर्ण होगा और न कभी इसका विध्वंस होगा। प्रत्युत इसकी रमणीयता-वृद्धि की ही आशा है।

अलकाधिपति कुबेर के कर्म्मचारी एक यक्ष ने कुछ अपराध किया था। उसे कुबेर ने एक वर्ष तक, अपनी प्रियतमा पत्नी से दूर जाकर रहने का दण्ड दिया। यक्ष ने इस दण्ड को चुपचाप स्वीकार