का एक शुद्ध संस्करण तैयार कर दे। सभा ने सोचा कि अब तक जितने संस्करण रामचरित मानस के प्रकाशित हुए हैं उनमें प्रकाशकों या टीकाकारों ने अपनी-अपनी रुचि और बुद्धि के अनुसार पाठ बदल डाले हैं। पाठों के परिवर्तन के साथ ही साथ बहुत-सी क्षेपक-कथाएँ भी इसमें सम्मिलित हो गई हैं। यह बात यहाँ तक बढ़ी है कि सात कांडो के स्थान में आठ कांड हो गए। इसलिये सभा ने इंडियन प्रेस के स्वामी का प्रस्ताव बड़े उत्साह और आनंद के साथ स्वीकार किया और इस कार्य को करने के लिये पांच सभासदों की एक उपसमिति बना दी जिसमे मैं भी था। इस उपसमिति ने नीचे लिखी प्रतियों को आधार मानकर इस कार्य को आरंभ किया।
(क) केवल बालकांड संवत् १६६१ का लिखा हुआ, यह अयोध्या में एक साधु के पास मिला था। इसका पाठ बहुत शुद्ध है। बीच-बीच में हरताल लगाकर पाठ शुद्ध किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि गोसाईं जी ने स्वयं इस प्रति का संशोधन किया था।
(ख) राजापुर का अयोध्याकांड। यह कांड स्वयं तुलसीदास के हाथ का लिखा कहा जाता है। ऐसी कथा है कि पहले यहाँ सातों कांड तुलसीदास जी के हाथ के लिखे हुए थे, परंतु एक समय एक चोर उनको लेकर भागा। जब इस बात का पता लगा और लोगों ने उसका पीछा किया तब उसने समस्त पुस्तक को जमुना जी में फेंक दिया। बहुत उद्योग करने पर केवल एक कांड निकल सका जिस पर अब तक पानी के चिह्न वर्तमान हैं।
अयोध्या और राजापुर की पुस्तकों का बड़ा मान है। पर