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मेरी आत्मकहानी
 


हाई स्कूल में भी मैंने पढ़ा। वहाँ मेरे पिता के एक मित्र के पुत्र बाबू दामोदरदास प्रोफेसर थे। उन्हीं की प्रेरणा से मैं वहाँ भेजा गया था। पर स्कूल बहुत दूर पड़ता था और मैं क्लास के कमजोर लड़कों में से था। इसलिये महीने-डेढ़ महीने के बाद मैं फिर हनुमान-सेमिनरी में आ गया। यहाँ से मिडिल पास करने पर क्वींस कलिजियेट स्कूल के नवें दर्जे में भरती हुआ। अब तक मेरी पढ़ाई की सब कमजोरी दूर हो गई थी और मैं क्लास के अच्छे लड़कों में गिना जाता था। स्कूल के सेकेड मास्टर बाबू राममोहन बैनर्जी थे। वे चोगा पहन कर स्कूल में आते थे। इसी नवें दर्जे में पहले-पहल बाबू सीताराम शाह से मेरा परिचय हुआ और ६ वर्षों तक पढ़ाई में साथ रहा। इस प्रकार ये मेरे पहले मित्रों में से हैं। इनके द्वारा बाबू गोविंददास तथा उनके छोटे भाई डाक्टर भगवानदास से भी मेरा परिचय हुआ। बाबू गोविंददास ने मुझे सदा उत्साहित किया और सत्परामर्श से मुझे सुपथ पर लगाया। जब मैं दसवे दर्जे में पहुँचा तब मेरा परिचय बाबू जितेंद्रनाथ बसु से हुआ। ये बाबू उपेंद्रनाथ बसु तथा बाबू ज्ञानेंद्रनाथ बसु के छोटे भाई और बाबू शिवेंद्रनाथ बसु के बड़े भाई थे। इनके पिता बाबू हारानचद्र बसु को ससुराल की संपत्ति मिली थी। ये लोग पहले बंगाल के कोन नगर में रहते थे, फिर ननिहाल में आकर रहने लगे। काशी में प्रतिष्ठित बंगाली रईस बाबू राजेंद्रनाथ मित्र थे जिनका प्रसिद्ध मकान चौखंभा में है। इनकी अतुल संपत्ति के ३ भाग हुए। एक भाग के स्वामी बाबू उपेंद्रनाथ बसु तथा उनके भाई हुए। हारान बाबू पहले बंगाल के