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मेरी आत्मकहानी
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लखनऊ का प्रवास

(१) अभी मै बीमारी से उठकर पूर्णतया स्वस्थ भी नहीं हुआ था कि मुंशी गंगाप्रसाद वर्म्मा ने मुझे कालीचरण हाई स्कूल का हेडमास्टर बनाकर लखनऊ बुलाया। बाबू कालीचरण लखनऊ के रहनेवाले थे। उन्होने कलकत्ते में जाकर बहुत धन कमाया और सार्वजनिक कामों के लिये एक लाख रुपयों का दानपत्र लिखकर उसकी रजिस्टरी करा दी। मुशी गंगाप्रसाद वर्म्मा को किसी प्रकार इस दानपत्र का पता लग गया, यद्यपि उसके छिपाने का बहुत उद्योग किया गया था। उन्होंने दानपत्र की नकल लेकर उस रुपए के प्रामिसरी नोट खरीद लिए और उनके नाम से कालीचरण हाई स्कूल स्थापित करने का आयोजन किया। लखनऊ में एक खत्रीपाठशाला थी। उसी को उन्होंने हाई स्कूल बना दिया। स्कूल खुलते ही उसमे लडको की भर्ती होने लगी। मुझे पता नहीं था कि यह स्कूल अभी रिकगनाइज हुआ या नहीं, और विज्ञान की पढ़ाई के लिये आज्ञा ली गई है या नहीं। मैंने समझा था कि यह सब हो गया है। अतएव मैं लड़को को भर्ती करने लगा। पीछे से ज्ञात हुआ कि मैंने भ्रमवश बहुत-सी बातें मान ली हैं। सराय मालीखाॅ मे एक जमीन लेकर वहाँ स्कूल की नई इमारत बन रही थी। कई महीने तक खत्रीपाठशाला के पुराने भवन में स्कूल चलता रहा, पर वह जगह छोटी थी और क्लास बढ़ गए थे। किसी प्रकार जल्दी करके नई इमारत तैयार की गई। वहाँ