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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/२६१

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मेरी आत्मकहानी
 

उद्देश्य, आपकी योजना क्या आपके आदर्श सदा उत्कर्पोन्मुख ही होते हैं। इससे चाहे आपका ययार्थ गुणानुवाद न बन पड़े, पर हमारे हृदय सर्वदा आपके प्रति कृतज्ञता के भाव से परिपूर्ण रहेंगे इसमे संदेह नहीं।

‘आप ऐसे पुरुषरन्न को इतने दिनों तक अपने बीच प्रधान आचार्य और कार्य-प्रवर्तक के रूप में देख-देख हम कितना गौरव समझते आ रहे थे, कितने गर्व का अनुमान करते आ रहे थे। अत:इस विशेष कार्यक्षेत्र से आपके अलग होने पर जो दुख हमे हो रहा है वह एक दो दिन का नहीं, अपनी जो गौरव-हानि हम समझ रहे हैं वह कमी पूरी होनेवाली नहीं। आप हमे छोड़कर जा रहे हैं, पर जो उज्जवल स्मृति छोड़े जा रहे हैं वह निरंतर हमारा पथप्रदर्शन करती रहेगी, हममें शक्ति और साहस का संचार करती रहेगी। इस विश्वविद्यालय के भीतर तथा अन्यत्र भी हिंदी के मान और प्रतिष्ठा के लिये आपने जो कुछ किया है वह चिरस्मरणीय रहेगा।

“इस अवसर पर रह-रहकर यह भी मन में उठता है कि आप हमसे अलग कहाँ हो रहे हैं। आपका हमारा संबंध इस विद्यालय तक ही परिमित नहीं है। वह कहीं अधिक विस्तृत और चिरस्थायी है। अंत में हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते है कि आप शतायु होकर इसी प्रकार हिंदी के अम्युदय का प्रयत्न करते रहें और हम आपकी सौम्य मूर्ति को अपने मनोमंदिर में सा प्रेमासन पर प्रतिष्ठित रखें।

(१३) सन् १९२० में राय कृष्णदास ने भारत-कला परिषद् की