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मेरी आत्मकहानी
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ने बहुत जोर दिया, तब कही जाकर उन्होंने स्वीकृति दी। अस्तु, निमंत्रण-पत्र बाँटे गए और उत्सव का आयोजन किया गया। जब इसकी खबर कांग्रेस-भक्त नवयुवको को लगी तो वे कहने लगे कि यदि राजा साहय सभा में आवेंगे तो हम लोग उनकी बेइज्जती करेंगे और उन्हे सभापति न होने देंगे। बड़ी कठिन समस्या उपस्थित हुई। कुछ समझ में न आता था कि क्या किया जाय। अंत में यह निश्चय हुआ कि राजा साहब को सभा में आने से रोका जाय और किसी दूसरे सभापति की खोज की जाय। ऐसा ही किया गया। चंद्रप्रभा प्रेस के मैनेजर पंडित जगन्नाथ मेहता ने इस समय बडी सहायता की। वे गए और रायबहादुर प० लश्मीशकर मिश्र को सभा में ले आए। पंडित लक्ष्मीशकर मिश्र, पंडित रामजसन मिश्र के ज्येष्ठ पुत्र थे। इन पडित रामजसन ने पहले पहल जायसी की पद्मावत छपाई थी। इनके चार पुत्र पंडित लक्ष्मीशकर मिश्र, पंडित रमाशंकर मिश्र, पंडित उमाशंकर मिश्र और पंडित ब्रह्मशंकर मिश्र थे। सभी एम० ए० पास थे और अच्छे अच्छे ओहदो पर थे। पं० लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘काशीपत्रिका’ निकालते थे। वे पहले कीस कालेज में गणित के प्रोफेसर थे। इस समय स्कूलो के Assistant Inspector थे। ई० ह्वाइट साहब इन दिनो इस प्रांत के डाइरेक्टर आव पब्लिक इंस्ट्रक्शन थे। वे मिश्रजी को बहुत मानते थे। यह सयोग सभा के लिये शुभ फलप्रद हुआ। उत्सव पंडित लक्ष्मीशंकर मिश्र के सभापतित्व मे आनंदपूर्वक मनाया गया और उक्त पंडित जी अगले वर्ष के लिये सभापति चुने गए। इन दिनों में सभा कुछ