पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९२
मेरी आत्मकहानी
 

कृत लिखी गई है, जो कि अशुद्ध है। यह ग्रंथ अनवरखाँ के आश्रित शुभकरण कवि ने अपने आश्रयदाता के नाम से लिखा था। (१९०९-११-३१) मे ग्रंथकर्ता का नाम शुभकरण ठीक क्यिा गया है, जैसा कि ग्रंथ में कवि ने स्वयं भी वर्णन किया है।

(५) सन् १९०६-०८ मे वर्णित जन अनाथ तथा अनाथदास भिन्न माने गए हैं, पर उनका ग्रंथ 'विचार माला' एक ही है, अत: दोनों एक ही हैं। इस ग्रंथ का निर्माण काल संवत् १८०३ के स्थान में १७२६ चाहिए था। (१९०९-११-७) में कथित अनाथदास भी यही हैं। अत: तीनों को एक मान कर ही लिखा गया है।

(६) सन् १९०६-०८ मे 'प्रेमरत्नाकर' रतनपाल भैया-कृत बतलाया गया है, परंतु यथार्थ में यह ग्रंथ देवीदास-कृत है जो कि रतनपाल भैया के आश्रित थे। राजनीति के कवित्त के रचयिता (१९१६-०८-२७, १९०२-१ और १९०२-८२) में वर्णित देवीदास और ये देवीदास एक ही थे, अत: चारो को एक ही माना गया है।

यह दिखाने का उद्देश्य इतना ही है कि जितनी अधिक खोज होती जायगी, उतनी ही नई बातों का पता लगता जायगा। सन् १९०० से लेकर १९११ तक की रिपोर्टों के आधार पर मैंने कैटोलोगस कैलोलोगरम के ढंग पर एक संक्षिप्त सूची तैयार की थी, जिसे संवत १९८० में काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा ने प्रकाशित किया।

सन् १९२० में सभा ने विद्वानो की एक उपसमिति इसलिये बनाई थी कि खोज का जो काम अब तक हुआ है उस पर विचार करके वह सभा को सम्मति दे कि पुरानी पुस्तकों के अनुसंधान,