पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/११९

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११४ ऐतिहासिक कहानियां सोच रहा था कि बलभद्रसिह प्रात्मसमर्पण करना चाहता है। उसने तत्काल तोपों को बन्द करने का आदेश दे दिया। सारी अग्रेजी सेना स्तब्ध खड़ी उस भग्न दुर्ग के मुक्तद्वार की ओर उत्सुकता से देखने लगी । बलभद्र ही सबसे पहले निकला। कन्धे पर बन्दूक, हाथ में नगी तलवार, कमर में खुखरी, सिर पर फौलादी चक्र, गले में लाल गुलूबन्द । और उसके पीछे कुछ घायल, कुछ बेघायल योद्धा बन्दुकें कन्धों पर और नंगी तलवारें हाथो में लिए हुए। उनके पीछे स्त्रिया, जिनकी पीठ पर बच्चे कसकर बंधे हुए और हाथों में नंगी खुखरियां । कुल सत्तर प्राणी थे । मब प्यास से बताव। बलभद्र का शरीर सीधा, चेहरा हंसता हुआ, मूछे नोकदार ऊपर को चढ़ी हुई। सिपाही की नयी-तुली चाल चलता हुआ वह अंग्रेजी सेना में धंसा चला गया। उसके पीछे उसके सत्तर साथी-स्त्री-पुरुष । किसीका साहस उन्हें रोकने का न हुआ ! बलभद्रसिंह अंग्रेजी सेना के बीच से रास्ता काटता हुआ साथियों सहित नालापानी के झरनों पर जा पहुचा। सवने जी भरकर झरने का स्वच्छ ठण्डा और ताजा पानी पिया। फिर उसने अंग्रेजी जनरल की ओर मुंह मोड़ा। उसी तरह बन्दूक उसके कन्धे पर थी और हाथ में नंगी सलवार । उसने चिल्ला- कर कहा-कलंगा दुर्ग अजेय है। अब मैं स्वेच्छा से उसे छोड़ता हूं। और वह देखते ही देखते अपने साथियों सहित पहाडियों में गुम हो गया। अंग्रेज़ जनरल और सेना स्तब्ध खड़ी देखती रह गई। जब अंग्रेज दुर्ग में पहुंचे तो वहां मर्दो, औरतों और बच्चों की लाशों के सिवा कुछ न था। ये उन वीरों के अवशेष थे जिन्होंने एक डिवीजन सेना को एक महीने से भी अधिक रोके रखा था, और जहां के संग्राम में जनरल जिलेप्सी को मिलाकर अंग्रेजों के इकत्तीस अफसर नौर ७१८ सिपाही काम पाए थे अंग्रेजों ने किले पर कब्जा कर उसे जमीदोज कर दिया। इस काम में उन्हें केवल कुछ घण्टे लगे। इस समय उस स्थान पर साल वृक्षों का घना जंगल है। और रीचपाना नदी के किनारे एक छोटा सा स्मारक बना हुआ है, जिसपर खुदा है-~~-'हमारे वीर शत्रु बलभद्रसिंह और उसके वीर गोरखों की स्मृति में सम्मानोपहार'