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बौद्ध कहानियां
 


आदि वाहनों का तांता लग गया। उनकी भीड़ से बाहर का विशाल प्राङ्गण भर गया।

सातवें तोरण के भीतर श्वेत पत्थर के एक विशाल सभा-भवन में अम्ब- पालिका नागरिक युवकों की अभ्यर्थना कर रही थी। यह भवन एक टुकड़े के ६४ हरे रंग के पत्थर के खम्भों पर निर्मित हुआ था, और इसपर रंगीन रत्नों को जड़कर फूल-पत्ती, पक्षी तथा वन के दृश्य बनाए गए थे। छत पर स्वर्ण का पत्तर मढ़ा था, जहां पर बारीक खुदाई और रंगीन मीना का काम हो रहा था। इस विशाल भवन में दुग्ध-फेन के समान उज्ज्वल वर्ण का अति मुलायम और बहुमूल्य विछावन बिछा था। थोड़े-थोड़े अन्तर से बहुत सी वेदियां पृथक-पृथक बनी थीं, जहां कोमल उपाधान, मद्य के स्वर्ण-पात्र और प्यालियां, जुआ खेलने के पासे तथा अन्य विनोद-सामग्री, भिन्न-भिन्न प्रकार के ग्रंथ, बहुमूल्य चित्र तथा अन्य बहुत सी मनोरंजन की सामग्री थी।

महाप्रतिहार अलिन्द तक अतिथि युवकों को लाता, वहां से प्रधान परि- चारिका उसे कक्ष तक ले पाती । कक्ष-द्वार पर स्वयं अम्बपालिका साक्षात् रति के समान आगत जनों का हाथ पकड़कर स्वागत करती, एक वेदी पर ले जाकर बैठाती, सुगन्ध और पुष्प-मालाओं से सरकार करती तथा अपने हाथ से मद्य ढालकर पिलाती थी। उस स्वर्ग-सदन में, रूप-यौवन और जीवन के आलोक में, अर्द्ध रात्रि तक नित्य ही माधुर्य और आनन्द का प्रवाह बहता था। सैकड़ों दासियां दौड़-धूप करके याचित वस्तु तत्काल जुटा देतीं। फिर कुछ टहरकर संगीत-लहरी उटती । कोमल तन्तु-बाद्य गम्भीर मृदंग के साथ वैशाली के श्रेष्ठ पुत्रों, राजगियों और कुमारों के हृदयों को मसोस डालता था । वाद्य की ताल पर मोम की पुतली के समान कुमारियां मधुर स्वर में स्वर-नाल और मूर्च्छनामय संगीत-गान करतीं, और नर्तकियां ठुमककर नाचती थीं। उस स्वप्न-सौन्दर्य के दृश्य को युवक सुगन्धित मद्य के चूंट के साथ पीकर अपने जन्म को धन्य मानते थे।

अम्बपालिका अब २० वर्ष की पूर्ण युवती थी। उसका यौवन और सौन्दर्य मध्याकाश में था। और लिच्छविगण तन्म के राजा ही नहीं, मगध, कोशल और विदेश के महाराजा तक उसके लिए सदैव अभिलाषी बने रहते थे। इन सभी महानृपतियों की ओर से रत्न, वस्त्र, हाथी आदि भेट में आते रहते थे और