सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२२ राजनीतिक कहानिया . शरीर को ले, गठरी-मुठरी सिर पर लाद, कोई पांव प्यादे, कोई घोड़ा, गदहा, ऊंट, खच्चर, बैलगाड़ी पर, कोई अपने सशक्त साथी की पीठ पर चले अज्ञात यात्रा को, असहाय भिखारियों, खानाबदोशों की भांति । महिलाओं के पैरों में धाव हो गए, सुकुमारियां मूर्छित हो गई, वालक सिसक-सिसककर मरने लगे; वृद्धजन प्रांसुओं से अपनी धौली डाढी धोते चले-कांखते, लंगड़ाते, गिरते-पड़ते, भूखे- प्यासे । एक दो नहीं, लक्ष-लक्ष, सहन-सहस्र, शत-शत । उल्कापात ने उन्हें छिन्न-भिन्न किया। प्राधात ने उन्हें आहत किया, रोग ने उन्हें अल्पायुमृत्यु दी, भूख ने उन्हें श्राबरू बेचने पर लाचार किया। न बूढ़े की लाज रही, न कुल-वधू की मर्यादा । न बड़े का बड़प्पन रहा, न छोटे का शील । प्राणों को देते-ले ते, जीवन और मृत्यु का सामना करते, रात को, तारों से भरी खुली रात में बीच राह सोते, दिन जलती धूप में झुलसती प्रांखों से जार-जार आसू बहाते, थके हुए, गिरे हुए, घायल हुए परिजनों को घसीटते और कंधों पर ढोते हुए चलते चले गए। मरतों पर नाशीर्वाद के अश्रुविन्दु न्योछावर करते, और जीतों पर निराशा की गहरी सांस खींचते । प्राण-पुत्तलिकाओं का उन्होंने अपने हाथों वध किया-धर में वन्द करके भाग में फूंक दिया, और चल पडे अपनी समझ से निर्द्वन्द्व होकर, सब कुछ खोकर-केवल प्राणों का भार लेकर । उमा ने प्रांखों में आंसू भर कहा-बहुत हुआ देव, बहुत हुआ । अधम, क्षुद्र, मयं प्राणियों पर दया करो, नर-संहार रोको । निष्पाप कुमारियां लाज खो रही हैं ; स्नेहवती माताओं की गोद सूनी हो रही है। नर-रक्त की नदी पंचनद की हरी-भरी भूमि को लाल बना रही है। परन्तु त्रिशूली ने वाम हस्त ऊंचा करके डमरू वाद्य किया ! डम-डम-डम-डम डमर-डमर-डम डमर-डमर इमर-डमर हम-डमर-डमर-डम डमर-डमर। और फिर हंति करके एकबारगी ही विष-वमन किया।