कर सकते थे । एक प्रधान परिचारिक यूथिका, दूसरा एक वृद्ध दण्डधर जिसे
भीतर-वाहर सर्वत्र आने की स्वतन्त्रता थी। सम्राट का आगमन केवल इन्ही
दोनों को मालूम था और ये दोनों ही यह रहस्य भी जानते थे कि अम्बपालिका
को सम्राट् से गर्भ है।
यथासमय पुत्र प्रसव हुआ । यह रहस्य भी केवल इन्हीं दो व्यक्तियों पर ही प्रकट हुआ है और वह पुत्र उसी दण्डधर ने गुप्त रूप से राजधानी में जाकर मगध-सम्राट् की गोद में डालकर, अम्बपालिका का अनुरोध सुनाकर कहा- महाराजाधिराज की सेवा से मेरी स्वामिनी ने निवेदन किया है कि उनकी तुच्छ भेंट-स्वरूप मगध के भावी सम्राट आपके चरणों में समर्पित हैं । सम्राट् ने शिशु को सिंहासन पर डालकर वुद्ध दण्डधर से उत्फुल्ल नयन से कहा- मगध के भावी सम्राट को झटपट अभिवादन करो। दण्डधर ने कोश से तलवार निकाल, मस्तक पर लगाई और तीन बार जयघोष करके तलवार शिशु के चरणों में रख दी। सम्राट् ने तलवार उठाकर वृद्ध की कमर में बांधते-बांटते कहा-अपनी स्वामिनी को मेरी यह तुच्छ भेंट देना। यह कहकर उन्होंने एक वस्तु वृद्ध के हाथ में चुपचाप दे दी। वह वस्तु क्या थी, यह ज्ञात होने का कोई उपाय नहीं।
भगवान् बुद्ध वैशाली में पधारे हैं और अम्बपालिका की बाड़ी में ठहरे हैं । आज हठात् अम्बपालिका के महल में हलचल मच रही है । सभी दान-दासी, प्रतिहार, द्वारपाल दौड़-धूप कर रहे है। हाथी, घोड़े, पालकी, रथ सज रहे हैं। सवार शास्त्र-सज्जित हो रहे हैं । अम्बपालिका भगवान् बुद्ध के दर्शनार्थ बाड़ी में जा रही है। एक वर्ष बाद आज वह फिर सर्व-साधारण के सम्मुख निकल रही है। समस्त वैशाली में यह समाचार फैल गया है। लोग झुण्ड के झुण्ड उसे देखने राजमार्ग पर डट गए है । अम्बपालिका एक श्वेत हाथी पर सवार होकर धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है । दासियों का पैदल झुण्ड उसके पीछे है, उसके पीछे अश्वारोही दल है और उसके बाद हाथियों पर भगवान की पूजा सामग्री । सबके पीछे बहुत से वाहन, कर्मचारी और पौरगण ।
अम्बपालिका एक साधारण पीत-वर्ण परिधान धारण किए अधोमुख बैठी है। एक भी आभूषण उसके शरीर पर नहीं है । बाड़ी से कुछ दूर ही उसने