पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पोर नाबालिग देश के जागरण में अनगिन उद्ग्रीव तरुणों ने उत्सर्ग किया, पर वे अशात ही रहे । प्रस्तुत कहानी में ऐसे ही एक तरुण का परिचय मनोरमक भाषा में प्रस्तुत किया गया है। कभी-कभी वनारस चला पाया करता हूं। काम करते-करते जब बहुत थक जाता हूं-या दिमाग में कोई उलझन पड़ जाती है या बीवी से विगाड़ हो जाता है-तब वनारस ही एक जगह है जहां प्राकर दिमाग ठण्डा हो जाता है । दशाश्वमेध से छत वाली एक बड़ी नाव पकड़ और शरद् की प्रभातकालीन धूप में गगा की निर्मल लहरों पर तैरती हुई किश्ती की छत पर नंगे बदन एक चटाई पर औधे पड़कर वहां के सिद्धहस्त मालिश करने वालो से बदन में तेल मालिश कराना, दूधिया छानना और फिर किसी साफ-सुथरे पाद पर और कभी- कभी बीच धार ही में गंगा की गोद में चपल बालक की भांति उछल-कूदकर जल-क्रीड़ा करना, फिर उसी गंगा की लहरों पर हस की भांति तैरती हुई किश्ती की छत पर बैठकर कचौरीगली की गर्मागर्म कचौरियां और रसगुल्ले उड़ाना, रस- भरे सुवासित मघई पानों के दोने पर दोने खाली करना, मन में कितना पानन्द, बेफिकी, ताज़गी और मस्ती भर देता है ! रात को बनारस की मलाई और पान की गिलौरियां वह लुत्फ देती हैं जिसकी कल्पना भी दिल्ली के कचालू के पत्ते चाटने वाले नहीं कर सकते । मित्र-मण्डली भी काफी जुट गई है, यद्यपि मित्रों में न कोई नेकनाम लीडर है, न नामी-गरामी वकील, न कोई रईस । कुछ नौजवान दोस्त हैं ; लोग उन्हे गुण्डा कहकर बदनाम करते हैं, पर मुझे उनकी सोहबत चन्द्रोदय, मकरध्वज, च्यवनप्राश और मदनमंजरी वटी से भी ज्यादा ताकत देने वाली साबित हुई है। मेरे ये बेफिक्रे दोस्त जव मेरी जेब के पैसों से दूधिया छान, कचौरियां हजम कर मलाई चाटकर, पान कचरते हुए, कैप्टन के सुगन्धित धुएं का बबण्डर मेरे चारों