पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/७३

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INER मुगल कहानियां बांदी ने कंपित स्वर में कहा- सरकार ! बांदियों की खुशी ही क्या ! मलीमा हलते-हंसते लोट गई। बांदी ने वंशी लेकर कहा-क्या सुनाऊँ? वेगम ने कहा- ठहरो, कमरा बहुत गरम मालूम देता है इसके तमाम 'दरवाजे और खिड़कियां खोल दे । चिरागों को बुझा दे, चटखती चांदनी का लुत्फ उठाने दे, और वे फूलमालाएं मेरे पास रख दे। बांदी उठी। सलीमा बोली-सुन पहले एक गिलास शरबत दे, बहुत प्यासी हूं। वादी ने सोने के गिलास में खुशबूदार शरवत बेगम के सामने ला धरा। बेगम ने कहा-उफ् ! यह तो बहुत गर्म है । क्या इसमें गुलाव नहीं दिया ? वांदी ने नम्रता से कहा-दिया तो है सरकार ! 'अच्छा, इसमें थोड़ा-सा इस्तंबोल और मिला।' साकी ग्लास लेकर दूसरे कमरे में चली गई। इस्तंबोल मिलाया, और भी 'एक चीज मिलाई। फिर वह सुवासित मदिरा का पान बेगम के सामने ला एक ही सांस में उसे पीकर बेगम ने कहा-अच्छा, अब सुनो । नूने कहा था कि तू मुझे प्यार करती है ; सुना, कोई प्यार का ही गाना सुना । इतना कह और गिलास को गलीचे पर लुढ़काकर मदमाती सलीमा उस कोमल मखमली मसनद पर खुद भी लुढ़क गई, और रस-भरे नेत्रों से साकी की ओर देखने लगी। साकी ने वंशी का सुर मिलाकर गाना शुरू किया--- 'दुखवा मैं कासे कहूं मोरी सजनी...' बहुत देर तक साकी की वंशी और कंठ-ध्वनि कमरे में घूम-घूमकर रोती रही। धीरे-धीरे साकी खुद भी रोने लगी। साकी मदिरा और यौवन के नशे मे चूर होकर झूमने लगी। गीत खतम करके साकी ने देखा, सलीमा बेसुध पड़ी है। शराव की तेजी से उसके गाल एकदम सुर्ख हो गए है, और तांबूल-राग-रंजित होंठ रह-रहकर फड़क रहे हैं। सांस की सुगन्ध से कमरा महक रहा है। जैसे मंद पवन से कोमल पत्ती कांपने लगती है, उसी प्रकार सलीमा कर वक्षःस्थल धीरे-धीरे कांप रहा