समारोहों के समय उपाधियों को अब कोई महत्व नहीं दिया
जाता । 'सम्मान-सूचक' उपाधियोंवाले सज्जन बड़े असमञ्जस में
पड़ गये हैं । वे केवल पंडित, लाला, मुन्शी या मिस्टर द्वारा
ही सम्बोधित किया जाना अधिक पसन्द करते हैं । साधारण
मनुष्य को इनकी असाधारणता का ज्ञान होते ही वह इनके पास से मलग हट जाता है ।
स्वदेशी
'स्वदेशी' के निमित्त किया गया सारा प्रयत्न खहरकी तैयारी
और प्रचार पर ही केन्द्रीभूत रहा है । यद्यपि तैयारी की गति
धीमी है, वह बढ़ी हुई मांग का साथ नहीं दे सकती, तो भी यह
जानकर सन्तोष होता है कि राष्ट्रीय महासभा द्वारा विभाजित देश के १६ प्रान्तों से १६ में बहुत अच्छी उन्नति हुई है । खद्दर विभाग का प्रबन्ध हालमें ही सेठ जमनालाल बजाज की योग्य अधीनता में रख दिया गया है, वे अपनी सारी शक्ति उसी में लगा रहे है । उनके परिश्रम का व्यौरा यहां नहीं दिया गया है और उन्होंने जिस प्रणाली- का सूत्रपात किया है उसके सम्बन्ध में इतना शीघ्र कुछ नहीं कहा जा सकता । फिर भी इस सम्बन्ध में कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक है । खहर की अधिक मांग से प्रलोभित होकर विदेशी कारखाने वालों तथा देशी व्यापारियों ने भारत के बाजारों में विदेशी खदर का प्रचार करना शुरू किया । यह बेईमानी इतनी चतु.