और भी निकटवती बना देनेका साधन हुआ है। हमें पूर्ण विश्वास है कि केवल प्रार्थनाके हो द्वारा खिलाफतके प्रश्नका पूर्णतया निपटारा हो सकता है। लोग कहते हैं कि प्रार्थनाका द्वार दोनोंके लिये बराबर खुला है अर्थात् इससे जितना लाभ हम उठा सकते हैं उतना ही हमारा शत्रु-जिसके मुकाबले में हम प्रार्थनाके साधनका प्रयोग करना चाहते हैं-उठा सकता है। इसे बतलानेकी आवश्यकता नहीं, क्योंकि यह साधारण बात सब कोई जानते है। पर इससे प्रार्थनाकी सार्थकता पर कोई क्षति नहीं पहुंचती । उसका मूल्य तो सदा बराबर है। हम लोगोंने प्रार्थनाका जो मूल्य रख लिया है उसके विरुद्ध ये सब बातें लागू हो सकती हैं। ईश्वरके साथ शर्तबन्दी करना उचित नहीं प्रतीत होता। केवल इतना हो जान लेना पर्याप्त है कि
अनादि कालसे प्रार्थना और आराधना राष्ट्रीय तथा वैयक्तिक सङ्कटोंके निवारणमें सदा प्रधान सहायक होता आया है। हमारी यही आन्तरिक कामना है कि इस सत्याग्रह सप्ताहमें उस प्राचीन व्यवस्थाका पुनरुद्धाटन हो और वह अपना पूर्ण विकास प्रगट करके अपनी असली सत्ता फिर स्थापित कर सके।