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मुसलमानामें तैयारी

है। यदि इसका ठीक तरहसे प्रयोग किया जाय तो किसी तरहकी बुराईको संभावना नहीं हो सकती। इसकी उपयोगिता उतनी ही अधिक होगो जितमा प्रबल त्यागका भाव इस व्रतके ग्रहण करनेवालोंमें होगा।

सबसे प्रधान कर्तव्य असहयोगके लिये क्षेत्र तैयार करना है। प्रत्येक बुद्धिमान तथा समझदार प्रजाका यह कर्तव्य है कि वह अपनी सरकारसे कह दे कि मैं आपके बेईमानी और पापके काम- में सहयोग नहीं कर सकता। यदि हमारी हीनता, लाचारी, और अविश्वास हम लोगोंके भार्गमें बाधा न उपस्थित करें तो हम इस परम पवित्र शस्त्रको अवश्य ग्रहण करते और इसका प्रयोग करते। यह बात निर्विवाद है कि कोई भी सरकार कितना ही जालिम और उच्छृखल क्यों न हो वह प्रजाकी अनुमति विना एक क्षणके लिये भी अपना शासन नहीं चला सकती अर्थात्प्र जाकी अनुमति अत्यन्त आवश्यक है चाहे वह अनुमति बल द्वारा ही क्यों न प्राप्त की जाय। पर जिस क्षण प्रजा उसकी उबलताकी परषा करना छोड़ देतो है, राजाकी शक्ति गायब हो जाती है। पर ब्रिटिश सरकार हर स्थानपर जोर और जुल्मले ही काम चलाना नहीं चाहती। वह शासितोंकी सदिच्छा प्राप्त करनेकी भी चेष्टा करती है। पर वह शासितोंसे कोई बात जबर्दस्ती मनवानेसे भी बाज नहीं आती। उसने ईमानदारी सबसे उत्तम नीति है' का सर्वथा स्थाग कर दिया है। इसलिये अपने मतमें लाने के लिये वह अनेक प्रकारसे आपकी