उपाधिधारी तथा अवैतनिक पदभोगीके दरवाजे पर जाकर खट-खटाना होगा। उसे कांग्रेस के निर्णय को सुनाना होगा, इस निर्णय की उपयोगिता बतलानी होगी। उसके कर्तव्य को सुझाना होगा और तब उससे प्रार्थना करनी होगी कि ऐसी अवस्था में उपाधि धारण किये रहना या अवैतनिक पदों पर कायम रहना
आपको शोभा नहीं देती ।
पर इस ब्रत का सबसे प्रधान और महत्व पूर्ण काम होगा सङ्गठन, परिचालन, तालीम, परस्पर सहयोग तथा काम करनेवालों में एकता और मेल। हमारा सङ्गठन जिनना ही हृढ़ होगा हमारा असहयोग व्रत उतना ही परिपूर्ण और सार्थक होगा। पञ्जाब में हम जिस किसी सभा में गये वहां की उपस्थित जनता के आकार, भाव और इङ्गित को देखने से हमें स्पष्ट विदिन हो जाता था कि वे सरकार के साथ सहयोग त्याग करने के लिये हर तरह से तैयार हैं। केवल वे यह जान लेना चाहती हैं कि इस परित्याग का क्या तरीका है और इस परित्याग में उन्हें क्या करना होगा। कितने लोग तो ऐसे हैं जिन्हें सरकार की जटिल शासन व्यवस्था ही समझमें नहीं आई है। यदि उनसे कहा जाता है कि आप भी इस सरकार के प्रतिपालक हैं, इसके मञ्चालन में आप भी सहायता करते हैं, आपके सह-योग पर ही इसकी गति है तो वे हंसते मौर विस्मय प्रगट करते हैं। वे कहते हैं :-"मैं तो इस सरकारकी शासन प्रणालीको सममता तक नहीं कि यह किस तरह चलती है,