छापा मारने का भी उतना डर न था।
'इतने ही विजय से हमलोग निश्चन्त नहीं हुए। क्योंकि हमलोगो का संकल्प था कि अफरीदीमात्र का मूलोच्छेद कर डाला जाय। परन्तु अफ़रीदियों की प्रधान बस्ती 'लुण्डोकोतल' तक पहुंचने के लिये सुगम मार्ग के जानने की बड़ी आवश्यकता थी, इसलिये सौ सौ सैनिकों का एक एक गोल चारोओर सुगम मार्ग के अनुसंधान के लिये रवाने कर दिया गया था। उन्हीं गोलों में से एक गोल के साथ मैं भी एक ओर को गया था। हमलोगों को सेनापति ने तीन दिन के भीतर लौट आने की आज्ञा दी थी, किन्तु दैवसंयोग से हम दो चार आदमी अपने गोल से बिछुर गए और अनजाने पहाड़ी देश में इधर उधर भटकते रहे। उस समय हमलोग ऐसी भूलभुलैयां में पड़ गए थे कि न तो अपने गोलही को पाते थे और न अपनी छावनी के मार्ग ही को।
"निदान, योंही भटकते हुए हम लोग चौथे दिन, तीसरे पहर के समय एक पहाड़ी पगदंडी से चले जाते थे कि पासही के एक घने जंगल में से कुछ कोलाहल सुन पड़ा। यह सुनतेही हम लोग ठहर गए और अपने अपने हर्वे हथियारों को सम्हाल कर यह जानने की कोशिश करने लगे कि यह कैसा कोलाहल है! इतने ही में हमलोगों ने एक स्त्री की करुणमय रोदनध्वनि सुनी और झट उधर की ओर पैर बढ़ाया। बात की बात में हमलोग वहां पहुंच गए और जाकर क्या देखते हैं कि तीन चार गोखो सिपाही एक परमसुन्दरी युवती को पकड़ कर 'खैचातानी' कर रहे हैं और पासही पेड़ से एक कफ़रीदी युवक जकड़ कर बांध दिया गया है।
"यह देखते ही असल मतलब को मैंने समझ लिया और घुड़क कर उन पाजी गोखी को वहांस चले जाने के लिये कहा। संयोग अच्छा था कि बिना 'खूनारेज़ी' किए हो वे गोर्खे वहांसे भाग गए और मैने अपनी तल्वार से उस अफ़रीदी युवक के बंधन को काट कर उस युवती से कहा,-"सुन्दरी! अब तुम न डरो, क्यों कि वे बदमाश भाग गए।"
"क्रोध, क्षोभ, अभिमान और आत्मगौरव के कारण उस सुन्दरी युवती की नुकीली और कानतक फैली हुई बड़ी बड़ी आंखों से उस समय आग बरस रही थी और उसका सारा शरीर थरथर कांप रहा था। सो, एक पत्थर के टुकड़े पर बैठ और अपने चित्त को कुछ शान्त करके उस युवती ने कहा