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(३०)
[चौथा
याक़ूतीतख़्ती


नतीजा निकाला है कि अगर इस कार्रवाई से वह मेरे बापको खुश कर सके तो मेरे पाने की दर्खास्त करे! लेकिन मै उसपर थूकूगीं भी नहीं, मुहब्बत करना तो दूर रहा; ऐसी हालत में मेरा वालिद मेरी मर्जी के खिलाफ़ हर्गिज़ कोई कार्रवाई न करेगा। इसी सिपाही की ज़बानी, जिसे तुमने यह तख्ती दिखलाई थी और जो मेरे पास इसे लेगया था, मैंने तुम्हारी गिरफ्तारी का हालसुना कि तुम्हें अबदुल ने इसी तख्ती के चुराने के कुसूर में गिरफ्तार किया है और यहां पर इस बात को उसने हर खासा आप में बड़ी सरगर्मी के साथ मशहूर किया है।"

मैंने कहा,-"किन्तु, हमीदा बीबी! मैंने तो वह तख्ती इसीलिये उस सिपाही को दिखलाई थी कि जिसमें वह मुझे छोड़ दे और मैं यहां से चलाजाऊं। क्योंकि उस तख्ती का यही गुण तो तुमने बतलाया था! यदि मैं ऐसा जानता कि उस तख्ती के दिखलाने से इतना उपद्रव होगा तो मैं उसे कभी न दिखलाता।'

हमीदाने कहा,-"मुझे इस बातपर पूरा यकीन था कि इस तख्ती के बदौलत तुम सब आफ़तों से बचकर अफरीदी सिवाने से पार होजाओगे, लेकिन तुम्हें तख्ती देने का हाल कंबख्त अब्दुल ने जान लिया, इसीसे उस सिपाही नेतख्ती देखकर भी तुम्हें न छोड़ा और ऐसी हालत में जब कि तुम कैद होकर यहां तक लाए जा चुके थे। अगर तुम तख्ती को इस वक्त उस सिपाही को नभी दिखलाते, तौ भी दरबार में तुम्हारी तलाशी जुरूर लीजाती और उस वक्त तुम्हारे पास से वह तख्ती ज़रूर बरामद होती। इससे तो कहीं अच्छा हुआ कि तुम उस चोरी के इल्ज़ाम से बिल्कुल बेलाग बचगए और मेरी तख्ती मेरे पास पहुंचगई। अब अगर अबदुल या वह सिपाही, जिसने यह तख्ती तुमसे लेकर मुझे दी थी, तुमपर तख्ती के चुराने का इल्ज़ाम लगावेंगे भी तो मैं उनदोनो को बिल्कुल झूठा साबित कर दूंगी और अपने बाप को दिखला दूंगी कि मेरी तख्ती मेरे गले में मौजूद है और यह कभी मुझसे जुदा नहीं हई थी।"

मैंने कहा,-"किन्तु, हमीदा मुझ पर चाहे जैसी विपत्ति आती पर मैं कदापि तुम्हारे उस 'प्रेमोपहार' (तख्ती) को अपने पाससे दूर न करता और सिपाही को वह तख्ती कभी न दिखलाता यदि मैं जानता कि यह इस तख्ती को फिर मुझे न लौटावेगा। खेद है कि तुम्हारे 'प्रेमोपहार' की रक्षा मैं न कर सका।"