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पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/३४

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(३२)
[चौथा
याक़ूतीतख़्ती


क्यों हो। वाकई ख़ुदा ने मेरे दिल को एक अच्छे दिलेर शख्स के ताबे किया है, इसके लिये मैं तहेदिल से उसका शुक्रिया अदा करती हूं!"

यों कह और अपने गलेसे उतार कर हमीदा ने वह तख्ती मेरे गले में डालदी और जोश में आकर कहने लगी,-"प्यारे! मैं कल भरे दरवार में अपने बापके आगे यह बात कह दूंगी कि इस ज़वामर्द जवान पर मैं शैदा हूं और यह तख्ती मैने खुद इसे अपनी मुहब्बत की निशानी के तौर पर इसके नज़र की है।

अहा! उस समय, जबकि हमीदाने उस तख्ती को दोबारे मेरे गले में डाली थी, मेरी विचित्र दशा हो गई थी। उस समय उस सुन्दरी की भुजा का स्पर्श जब मेरे गले से हुआ था और उसके उष्ण विश्वास मेरे मुख में लगेथे उनसे यही जान पड़ता कि मानो खिली हुई पारिजातकुसुम की लता ने मेरा आलिङ्गन किया और उस पुष्प समूह की मत्तकरी सुगन्धि ने मेरे चित्त को हर लिया! अहा! यह कौन जानता था कि आसन्न मृत्यु के अवसर में उस भयंकर अफ़रीदी कारागार में भी अलोक सामान्य सुन्दरी का प्रेमालिङ्गन मुझे प्राप्त होगा।"

निहालसिंह की रहस्य पूर्ण कहानी को सुन कर मैं बहुत ही चकित हुआ और बोला,-"भई, निहालसिंह! तुम बड़े भाग्यवान हो।"

निहालसिंह ने कहा, सचमुच, जगदीशबाबू। मेरे भाग्यवान होने में कुछभी सन्देह नहीं है। अस्तु, सुनो-जिस समय हमीदा मेरे गलेसे लपट गईथी और मैंने उसके और उसने मेरे कपोलों का स्नेहपूर्वक चुंबन किया था, उस समय एक विचित्र घटना-संघटित हुई थी अर्थात ठीक उसी समय एक उद्वेजक अदृहास्य-ध्वनि सुनकर हम दोनो एक दूसरे के आलिङ्गन से पृथक हुए आंखे उठा कर हम दोनो ने देखा कि डाह की आग में ताव पेंच खाता हुआ कमीना अब्दुल् गुफ़ा के भीतर घुस आया है और आंखें गुरेर कर हम दोनो की ओर देख रहा है। उसे देखते ही मैं तो केबल उसे "कमीना पाजी" कह कर चुप हो गया, पर हमीदा ने बेतरह त्योरी बदल और कड़क कर कहा,

"बदज़ात तू किसके हुक्म से इस वक्त यहां आया!"

यह सुन अबदुल ने ताने से कहा,-"बीबी हमीदा! यह मुझे नहीं मालूम था इस वक्त आप तख्लिये में एक काफ़िर कैदी के साथ इश्क मज़ाकी का मज़ा लूट रहीं हैं, वरन बगैर इत्तला कराए, हर्गिज़ अन्दर आने की गुस्ताखी न करता। लेकिन निहायतही अफ़सोस का