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[तेरहवां
याक़ूतीतख़्ती


एकान्त में उसके साथ प्रेम की बातें करनी प्रारंभ की। इन्हीं दो घटों में ही मैंने यह बात जानली कि कुसीदा गुणों की खान, प्रेम की सरिता, स्वभाव की सुधा और वसुधा में साक्षात् स्वर्गीया नारी है।

निदान, फिर तो मैंने, निहालसिंह ने, हमीदा ने और कुलीदा ने एक साथ बैठकर बहुतही सुस्वादु भोजन किया और भोजन करने के बाद पान के साथही कुसीदा के अधरोष्ठ के अमृत का पान करके मैं अपने डेरे पर लौट आया, उस समय भी निहालसिंह मेरे साथ आए थे और मुझे पहुंचा कर पुनः लौट गए थे।

दोनों याकूतीतख्तियों में फारसी भाषा की जो शेरे खुदी हुई थीं, उनके भाव से मिलते जुलते एक श्लोक को नीचे लिख कर हम इस परिच्छेद को पूरा करते हैं,

"प्रेम एव परो धर्मः,
प्रेम एव परं तपः।
प्रेम एव परं ज्ञानं,
प्रेम एव परा गतिः॥"