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पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/११५

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छब्बीसवाँ अध्याय
कृष्ण-कर्ण संवाद

जब कृष्ण अपने कार्य में सफलीभूत नहीं हुए तो उन्होनें चलते-चलते एक और युक्ति लगाई जिससे कर्ण और दुर्योधन में विरोध हो जाय और कर्ण उसका पक्ष छोड़कर पाण्डवों का साथ दे।

कर्ण के विषय में कहा जाता है कि वह पाण्डवों का सौतेला भाई[] है, पर यह विवाह से पहले उत्पन्न हुआ था इसलिए कुन्ती ने भी उसे अपना पुत्र स्वीकार नहीं किया था। पाठकों को याद होगा कि बाल्यावस्था में पाण्डवों और धृतराष्ट्र के पुत्रों की परीक्षा ली गई थी तो कर्ण को अर्जुन का प्रतिपक्षी बनने की आज्ञा नहीं दी गई थी क्योंकि वह हीन कुलोत्पन्न था।[] उसी दिन से उसने प्रण किया था कि किसी तरह अर्जुन को परास्त कर इस अपमान का बदला लूँगा। इसी अभिप्राय से उसने दुर्योधन से मित्रता पैदा की और उसको अपना सहायक बना दिया। दुर्योधन की सेना में कर्ण और भीष्म अर्जुन के बराबर के योद्धा गिने जाते थे। दुर्योधन को विश्वास था कि इन दोनों के सामने अकेले अर्जुन की कुछ न चलेगी। इससे उसको इतना अभिमान था कि वह इस सन्धि को अस्वीकार करता था। कृष्णचन्द्र यद्यपि अन्तःकरण से चाहते थे, कि लड़ाई न हो, पर पाण्डवों को उनका स्वत्व न मिले और सन्धि हो जाय इस बात को भी वे पसन्द नहीं करते थे। वह तो इसे पाप समझते थे। इसलिए हस्तिनापुर से विदा होने के पहले उन्होंने यह युक्ति लगाई कि कर्ण को उसके जन्म का यथार्थ परिचय देकर दुर्योधन की सहायता करने से रोकें। कृष्ण ने कर्ण को बहुत कुछ समझाया और पाण्डवों की ओर से यहाँ तक कहा कि उम्र में सब भाइयों से बड़े होने के कारण गद्दी के अधिकारी आप ही हैं। इस पर भी कर्ण ने दुर्योधन का साथ छोड़ना स्वीकार नहीं किया और उत्तर दिया कि मैं दुर्योधन से उसका साथ देने का दृढ़ संकल्प कर चुका हूँ। अब यदि चक्रवर्ती राज्य भी मिले तो मैं उसका साथ नहीं छोड़ सकता। मैंने दृढ़ संकल्प कर लिया है कि या तो अर्जुन को युद्ध क्षेत्र में नीचा दिखाकर यश और कीर्ति लाभ प्राप्त करूँ और संसार में महावीर कहलाऊँ अथवा उसके हाथ से मारा जाकर स्वर्ग को सिधारूँ। कृष्णचन्द्र की चतुरता का यह अन्तिम वार भी खाली गया। अब इसके अतिरिक्त दूसरा उपाय बाकी न रहा कि अपनी-अपनी सेना सजाई जाए और युद्ध की तैयारियाँ की जायें। जब कृष्ण हस्तिनापुर से लौटे तो युधिष्ठिर ने अपनी सेना के साथ प्रस्थान किया और कुरुक्षेत्र के मैदान में आ पहुँचा। अब लड़ाई की तैयारियाँ होने लगीं।

 

  1. कर्ण कुन्ती का कानीन (कन्यावस्था में उत्पन्न) पुत्र था।
  2. कर्ण का पालन एक सारथी (अधिरथ) ने किया था।