पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/११७

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118 / योगिराज श्रीकृष्ण
 

से अच्छी तरह प्रकट होती है। कविकृतित्व के लिए जो अपवाद रखना हो वह रख लो, तब भी जो कुछ शेष बच जाता है वह नेत्रों के सामने एक विचित्र दृश्य खड़ा कर देता है। यह सच है कि उन वीर आर्यों के उत्तराधिकारी अब उस भाषा का भी पूरा ज्ञान नहीं रखते जिसमें ये घटनाएँ वर्णित हैं। इनके लिए इस युद्ध का वर्णन ऐसा है जैसे अँगरेजी भाषा से एक अनभिज्ञ पुरुष के लिए मिल्टन का पेरेडाइज लास्ट।[१]

सारांश यह कि दोनों ओर से लड़ाई की ठन गई। दोनों ओर की सेना सुसज्जित होकर सामने आई। सेनाओं को स्थान-स्थान पर बाँटकर सेनापति नियत कर दिये गए। कौरवों की ओर से सेना का आधिपत्य भीष्म पितामह को दिया गया और दूसरी ओर से धृष्टद्युम्न को। शंख, घड़ियाल आदि बाजों की ध्वनि से आकाश-पाताल एक हो गये। घोड़ों की टाप से पृथिवी कम्पायमान हो गई। सेनापतियों की प्रभावशाली वक्तृता से सैनिकों का रक्त उबल रहा था। इस मैदान में जो कुछ था वह उत्तेजनापूर्ण था। भाई भाई से दादा पोते से, गुरु शिष्य से लड़ने के लिए तैयार थे।

सारे स्नेह का त्याग करके आन की आन में भाई भाई के खून का प्यासा दीख पड़ने लगा। अहा! क्या दृश्य था? आर्यावर्त जैसे महान् देश की सारी युयुत्सु जातियाँ अपने अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर लड़ने को तैयार थीं।

सत्य है, किसी देश की समृद्धि को देखना हो तो वहाँ की सेना को देखें। अपने शत्रु के सामने आने के लिए प्रत्येक जाति अपनी पूरी शक्ति को प्रकट करने का यत्न करती है।

महाभारत की लड़ाई के आरम्भ के पहले कुरुक्षेत्र का मैदान एक प्रदर्शनी के समान था जिसमें भारतवर्ष का पूरा वैभव दिखाई देता था। विचित्र रंगमंच था। परदे विचित्र थे। बाजे गाने विचित्र थे और साथ ही अभिनेता भी अपने अपने गुण में पंडित थे, जो फिर इसके बाद आर्यावर्त के मंच पर नहीं आये। इस रंगस्थली में अर्जुन ने कृष्ण को आज्ञा दी कि मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले जाकर खड़ा करो जिससे दोनों दलों पर मैं अच्छी तरह से नजर डाल सकूँ। कृष्ण ने तत्काल आज्ञा का पालन किया और अर्जुन तथा कृष्ण दोनों सेनाओं के बीच जा खड़े हुए। ज्योंही अर्जुन की दृष्टि कुरुसेना पर पड़ी और उसने भीष्म और द्रोण को देखा तो उसका दिल हिल गया। इस समय वैराग्य के भाव उसके दिल में उठने लगे। यहाँ तक कि अर्जुन विवश होकर कह उठा कि सांसारिक सुख व राजपाट के लिए मुझे भीष्म और द्रोण जैसे सत्पुरुष और धृतराष्ट्र के पुत्रों का वध करना स्वीकार नहीं, मैं तो नहीं लड़ता। कृष्ण ने जब यह सुना तो आश्चर्यचकित होकर रह गये।

उन्होंने सबसे पहले अर्जुन को क्षत्रियत्व की अपील की और तिरस्कार से काम निकालना चाहा। उसने दोनों सेनाओं की ओर संकेत करके पूछा, "हे अर्जुन, आर्यों में तो ऐसी कायरता नहीं होती, जैसी इस समय तू दिखा रहा है। देख, दोनों दल लड़ने को कमर बाँधे खड़े हैं। तू इस समय यदि इस मिथ्या वैराग्य में फँसकर मैदान छोड़कर भाग खड़ा होगा तो लोग क्या कहेंगे? तेरे शत्रु तेरी वीरता में संदेह करके तेरी निन्दा करते फिरेंगे। क्षत्रिय का धर्म लड़ना

 

  1. अंग्रेज कवि मिल्टन रचित महाकाव्य