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10 योगिराज श्रीकृष्ण
 


जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :

जीवनी-लेखन : स्वदेशी और अन्य देशीय महापुरुषों के जीवन-चरित-लेखन का उनका कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इटली के विख्यात देशभक्त मैजिनी और गैरीबाल्डी का जीवनी-लेखन तो विदेशी शासकों की दृष्टि मे इतना आपत्तिजनक समझा गया कि इन दोनो पुस्तको की जब्ती के आदेश प्रसारित किये गये। उनके द्वारा निम्न जीवन-चरित लिखे गये--

1. लाइफ एण्ड वर्क ऑफ पं० गुरुदत्त विद्यार्थी एम०ए० : इस ग्रन्थ का प्रकाशन 1891 में पं० गुरुदत्त के निधन के एक वर्ष पश्चात् हुआ। यह लालाजी की प्रथम कृति है जिसे उन्होंने अपने मित्र तथा सहपाठी पं० गुरुदत्त के संस्मरणों के आधार पर लिखा था। विरजानन्द प्रेस, लाहौर से प्रकाशित यह ग्रन्थ अब प्राय: दुर्लभ हो चुका है। इसका उर्दू संस्करण 1992 में छपा था।

2. महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती और उनका काम : स्वामी दयानन्द का यह उर्दू जीवन-चरित लालाजी ने 1898 में लिखा। इसका हिन्दी अनुवाद गोपालदास देवगण शर्मा ने किया जो 1898 मे ही 'दुनिया के महापुरुषों की जीवन-ग्रन्थमाला' के अन्तर्गत छपा। 2024 वि० में सार्वदेशिक पत्र ने इसे अपने विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया।

3. योगिराज महात्मा श्रीकृष्ण का जीवन-चरित्र : उर्दू मे इसका प्रकाशन 1900 में लाहौर से हुआ। इसका हिन्दी अनुवाद मास्टर हरिद्वारीसिह बेदिल (गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर में अध्यापक) ने किया, जिसे पं० शंकरदत्त शर्मा ने वैदिक पुस्तकालय, मुरादाबाद से प्रकाशित किया।

4. शिवाजी महाराज का जीवन-चरित : 1896 में उर्दू में प्रकाशित।

5. महात्मा ग्वीसेप मैजिनी का जीवन-चरित : यह भी मूलत: उर्दू में लिखा गया और 1896 में प्रकाशित हुआ। ब्रिटिश शासन ने इसे जब्त कर लिया। इसका हिन्दी अनुवाद श्री केशवप्रसाद सिंह ने किया जिसके कई संस्करण छपे। नेशनल बुक ट्रस्ट ने इसे 1967 मे पुनः प्रकाशित किया।

6. गैरीवाल्डी : उर्दू में यह जीवन-चरित लिखा गया था। इसे भी अंग्रेजों ने प्रतिबधित कर दिया था। देश के स्वतंत्र हो जाने के पश्चात् नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा 1967 में पुन प्रकाशित हुआ।

7. सम्राट अशोक : मूल ग्रन्थ उर्दू में था। इसका हिन्दी अनुवाद चौधरी एण्ड सस, बनारस ने 1933 में प्रकाशित किया।


अन्य ग्रन्थ

1. दि आर्यसमाज : आर्यसमाज के सिद्धान्तो, कार्यो तथा उसके संस्थापक स्वामी दयानन्द के जीवन एवं कृतित्व का विश्लेषण करने वाला यह अंग्रेजी ग्रन्थ 1914 में लिखा गया था। उस समय लालाजी लंदन में थे। सुप्रसिद्ध प्रकाशक लांगमैंस ग्रीन एण्ड कम्पनी ने इसे 1915 में प्रथम बार लंदन से ही प्रकाशित किया। इसका एक भारतीय संस्करण प्रिंसिपल