पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/७०

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कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध / 69
 

और प्रजा अपने स्थान पर विराजमान थी। एक ओर वसुदेव और देवकी बैठे अपने प्यारे पुत्रों के प्राणों की रक्षा की कामना कर रहे थे। उनके समीप ही वृन्दावन के गोप बैठे हुए दोनों भाइयों के कारनामे देख रहे थे। चारो ओर सन्नाटा छा रहा था। हाथी के साथ मल्लयुद्ध होते देखकर सारी सभा जय-जयकार की ध्वनि से गूँज उठी। जब यह कोलाहल कुछ कम पड़ा तो क्या देखते हैं कि दो हृष्ट-पुष्ट पहलवान इनका मुकाबला करने के लिए आगे आए हैं। इस पर लोगों को क्रोध आया और चारो ओर से त्राहि-त्राहि की ध्वनि करने लगे। पर महाराज कंस के बैठे रहते किसकी चल सकती थी। लड़ाई शुरू हुई। एक-एक पहलवान एक-एक राजकुमार से भिड़ गया और आपस में हाथापाई होने लगी। परिणाम जो विचारा था, वही हुआ। यादववंशीय राजकुमारों के आगे किराये के टट्टू ठहर नहीं सके और पटकनी खा गये। उनके पटकनी खाते ही कंस के आगे अँधेरा छा गया। इतने ही में गोपों के लडकों ने आकर कृष्ण और बलराम के साथ जयकार किया और विह्वल हो नाचने लगे। इनका नाचना कंस के घायल हृदय पर नमक के तुल्य था। महाराज कंस इनकी ढिठाई देखकर जल गया और आज्ञा दी कि अभी ये सब लड़के कृष्ण और बलराम सहित सभा से बाहर निकाल दिये जायें और वसुदेव का कठोरता से वध किया जाय। नन्द को बन्दी किया जाय। पर बलराम और कृष्ण की शूरता को देखकर किसी का साहस न हुआ कि कोई इन आज्ञाओं का पालन करता या उसके लिए आगे बढ़ता। लोग तो पहले से ही कंस से दुःखित थे और चाहते थे कि किसी तरह उससे छुटकारा मिले। सारांश यह कि सारी सभा में से कोई भी उसकी आज्ञा पूरी करने के लिए नहीं मिला। कंस यह लीला देख अनाथ की भाँति बैठा था और सोच रहा था कि मेरा सारा किया-कराया मिट्टी में मिल गया। इतने ही में कृष्ण कूदकर उस मंडप में आ गये जहाँ कंस विराजमान था और आते ही आव देखा न ताव, कंस को बालों से पकड़[१] कर भूमि पर दे मारा। कुछ देर तक दोनों में लड़ाई हुई और अंत में प्रतापशाली कृष्ण के हाथ से वह मारा गया। कंस से उसकी प्रजा ऐसी आतुर हो गई थी कि इतनी भीड़ में से किसी ने भी उसको बचाने का यत्न नहीं किया। ऐसा लगता था लोगों ने इस अवसर को दुर्लभ समझा और दोनों प्रतिपक्षियों को अपने आप में निपट लेने का अवसर दिया। हाँ, कंस का भाई सुमाली आगे बढ़ा। उसको बलराम ने पकड़ लिया और मार डाला।

 

  1. भागवत से मालूम होता है कि कंस और कृष्ण का मुकाबला हुआ और कंस के जो आठ भाई थे वे भी लड़े और मारे गए