पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/८९

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कृष्ण, अर्जुन और मीम का जरासध की राजधानी म आगमन /89
 

हूँ।"

कृष्ण ने उत्तर दिया, “हे नृप! तुमने क्षत्रिय वंश पर बड़े-बड़े अत्याचार किये हैं। अनेक राजाओं को तुमने बिना प्रयोजन कारागार में बन्द कर रखा है। क्षत्रिय पुत्रों से तू शूद्रों का काम लेता है। राजपुत्रों पर तु नाना प्रकार के अत्याचार करके अपने को निष्पाप समझता है। हम लोग धार्मिक हैं, धर्म हमारा जीवन है और धर्म की रक्षा करना परम धर्म और कर्तव्य है। हमे परमेश्वर ने यह सामर्थ्य दी है कि हम धर्म की रक्षा कर सकें। यह सामर्थ्य रखकर भी तुझे तेरे बुरे कामों का दंड न देना मानो अपने आपको पाप का भागी बनाना है। अन्यायी का सिर कुचलना और पीडित की सहायता करना प्रत्येक क्षत्रिय का परम धर्म है। हम इसी अभिप्राय से यहाँ आये है कि तुझे याद रहे कि हम ब्राह्मण नही हैं। हम क्षत्रिय है। मेरा नाम कृष्ण है। ये दोनों मेरे साथी पाण्डुपुत्र हैं। इनमे से एक का नाम अर्जुन है और दूसरे उनके भाई भीमसेन है। हम तुझसे मल्लयुद्ध करने आये हैं। या तो तू उन सब क्षत्रियों को स्वतंत्र कर दे जिनको तूने दास बना रखा है अथवा हमसे युद्ध कर। हम क्षत्रिय कुलभूषण महाराज युधिष्ठिर को आज्ञा से तुझसे अपनी जाति का बदला लेने के लिए आये हैं। मरने से तो हमें भय नहीं क्योंकि हमें विश्वास है कि धर्मयुद्ध में मरने से क्षत्रिय योद्धा स्वर्ग जाता है। यदि तू अपने आपको पृथिवी पर महाबली समझता है तो यह तेरी भूल है, क्योंकि संसार में अभिमानी पुरुष निश्चय ही नाश को प्राप्त होता है। इस संसार में एक से एक बढ़कर प्रतिभाशाली हैं। इसलिए हे राजन्! अपनी बुराइयों को छोड़, परमेश्वर का डर मान और इन बन्दी राजाओं को छोड़ दे अथवा हमसे युद्ध कर।"

कृष्ण की इस लम्बी और प्रभावशाली वक्तृता को सुनकर जरासंध हँसा और बोला, “हे कृष्ण, तू जानता है कि मैं बिना युद्ध में पराजित किये किसी को भी बन्दी नहीं बनाता। फिर मै ऐसा भीरु भी नहीं कि किसी की धमकियों से उन्हें स्वतंत्र कर हूँ। मैं युद्ध के लिए तैयार हूँ। या तो सेना सहित मुझसे युद्ध करो या तुममें से एक या दो या तीन मिलकर मुझ अकेले से लड़ो।'

इस पर कृष्ण ने कहा, "आप ही बताइये कि हम तीनों में से आप किससे युद्ध करेगे?"

यह सुनकर जरासंध ने कृष्ण और अर्जुन की ओर देखा तो ये दोनों उसे दुर्बल अँचे क्योंकि उनका शरीर दुबला-पतला था। इसलिए उसने उन दोनों से युद्ध करना अपनी मर्यादा से बाहर समझकर भीम से युद्ध करना पसन्द किया।

जब भीम और जरासंध की जोड़ी ठहर गई तो राजा जरासंध ने बहुत-से ब्राह्मणों को यज्ञ करने के लिए कहा और स्वयं राजमुकुट उतार, केश बाँधकर लड़ने के लिए मैदान में उतर आया। उधर से भीम भी मुकाबले के लिए आ गया और दोनों में हाथापाई होने लगी। चौदह दिन तक मल्लयुद्ध हुआ और दोनों ने ही अपने दाँव-पेंच का अन्त कर डाला, पर कोई भी पराजित नहीं हुआ। निदान चौदहवें दिन जरासंध का दम टूट गया। जरासंध को थका हुआ देखकर कृष्ण ने भीम को ललकारकर कहा कि थके हुए शत्रु पर हाथ चलाना उचित नहीं। इस