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रंगभूमि

कुल्सूम-"फीस अबकी न दी जायगी। डॉक्टर की फीस उनकी फीस से जरूरी है। वह पढ़कर रुपये कमायेंगे, तो मेरा घर न नरेंगे। मुझे तो तुम्हारी ही जात का भरोसा है।"

ताहिर--( बात बदलकर) "इन मृजियों को जब तक अच्छी तरह तंबीह न हो जायगी, शरारत से बाज न आयेंगे।"

कुल्सम-“सारी शरारत इसी माहिर की थी। लड़कों में लड़ाई-झगड़ा होता ही रहता है। यह वहाँ न जाता, तो क्यों मुआमला इतना तूल खींचता। इस पर जो अहीर के लौंडे ने जरा दाँत काट लिया, तो तुम भन्ना उठे।"

ताहिर--मुझे तो खून के छींटे देखते ही जैसे सिर पर भूत सवार हो गया।"

इतने में घीसू की माँ जमुनी आ पहुँची। जैनब ने उसे देखने ही तुरन्त बुला लिया और डाँटकर कहा- 'मालूम होता है, तेरी शामत आ गई है।'

जमुनी-"बेगम साहब, सामत नहीं आई है, बुरे दिन आये हैं, और क्या कहूँ।

मैं कल दही बेचकर लौटी, ता यह हाल सुना। सोधे आपकी खिदमत में दौड़ी; पर यहाँ बहुत-से आदमी जमा थे, लाज के मारे लौट गई। आज दही बेचने नहीं गई। बहुत डरते-डरते आई हूँ। जो कुछ भूल-चूक हुई, उसे माफ कीजिए, नहीं तो उजड़ जायँगे, कहीं ठिकाना नहीं है।"

जैनब-"अब हमारे किये कुछ नहीं हो सकता! साहब बिना मुकदमा चलाये न मानेंगे, और वह न चलायेंगे, तो हम चलायेंगे। हम कोई धुनिये-जुलाहे हैं? यो सबसे दबते फिरें, तो इजत कैसे रहे? मियाँ के बाप थानेदार थे, सारा इलाका उनके नाम से काँपता था, बड़े-बड़े रईस हाथ बाँधे सामने खड़े रहते थे। उनकी औलाद क्या ऐसी गई-गुजरी हो गई कि छोटे-छोटे आदमी बेइजती करें? तेरे लौंडे ने माहिर को इतनो जोर से दाँत काटा कि लह-लुहान हो गया पट्टी बाँधे पड़ा है। तेरे शौहर ने आकर लड़के को डाँट दिया होता, तो बिगड़ी बात बन जाती। लेकिन उसने तो आते-ही-आते लाठो का वार कर दिया। हम शरीफ लोग हैं, इतनी रियायत नहीं कर सकते।”

रकिया-"जब पुलिस आकर मारते-मारते कचूमर निकाल देगी, तब होश आयेगा; नजर-नियाज देनी पड़ेगी, वह अलग। तब आटे-दाल का भार मालूम होगा।"

जमुगी को अपने पति के हिस्से का व्यावहारिक ज्ञान भी मिला था। इन धमकियों से भयभीत न होकर बोली-“बेगम साहब, यहाँ इतने रुपये कहाँ धरे हैं, दूध-पानी करके दस-पाँच रुपये बटोरे हैं। वहीं तक अपनी दौड़ है। इस रोजगार में अब क्या रखा है! रुपये का तीन पसेरी तो भूसा मिलता है। एक रुपये में एक भैंस का पेट नहीं भरता। उस पर खली, बिनौला, भूसी, चोकर, सभी कुछ चाहिए। किसी तरह दिन काट रहे हैं। आपके बाल-बच्चों को साल-छ मदीन दूध पिला दूँगी।"

जैनब समझ गई कि यह अहीरन कच्ची गोटी नहीं खेली है। इसके लिए किसी दूसरे ही मंत्र का प्रयोग करना चाहिए, नाक सिकोड़कर बोली-"तू अपना दूध अपने