जगधर ने धोती ऊपर चढ़ा ली, और सूरदास से लिपट गया। सूरदास ने उसकी एक टाँग पकड़ ली, और इतने जोर से खींचा कि जगधर धम से गिर पड़ा। चारों तरफ से तालियाँ बजने लगीं।
बजरंगी बोला-“वाह सूरदास, वाह!" नायकराम ने दौड़कर उसकी पीठ ठोंकी।
भैरो-"मुझे तो कहते थे, एक ही झपट्टे में गिरा दोगे, तुम कैसे गिर गये?"
जगधर-"सूरे ने टाँग पकड़ ली, नहीं तो क्या गिरा लेते। वह अडंगा मारता कि चारों खाने चित्त गिरते।"
नायकराम-"अच्छा तो एक बाजी और हो जाय।"
जगधर-"हाँ-हाँ, अब की देखना।"
दोनों योद्धओं में फिर मल्ल-युद्ध होने लगा। सूरदास ने अब की जगधर का हाथ पकड़-कर इतने जोर से ऐंठा कि वह आह! आह! करता हुआ जमीन पर बैठ गया। सूरदास ने तुरंत उसका हाथ छोड़ दिया और गरदन पकड़कर दोनों हाथों से ऐसा दबोचा कि जगधर की आँखें निकल आई। नायकराम ने दौड़कर सूरदास को हटा लिया। बजरंगी ने जगधर को उठाकर बिटाया और हवा करने लगा।
भैरो ने बिगड़कर कहा-"यह कोई कुरती है कि जहाँ पकड़ पाया, वहीं धर दबाया। यह तो गँवारों की लड़ाई है, कुस्ती थोड़े ही है।"
नायकराम-"यह बात तो पहले ही तय हो चुकी थी।"
जगधर सँभलकर उठ बैटा और चुपके से सरक गया। भैरो भी उसके पीछे चलता हुआ। उनके जाने के बाद यहाँ खूब कहकहे उड़े, और सूरदास की खूब पीठ ठोंकी गई। सबको आश्चर्य हो रहा था कि सूरदास-जैसा दुर्बल आदमी जगधर-जैसे मोटे-ताजे आदमी को कैसे दबा बैठा! ठाकुरदीन यंत्र-मंत्र का कायल था। बोला--"मरे को किसी देवता का इष्ट है। हमें भी बताओ सूरे, कौन-सा मंत्र जगाया था?"
सूरदास-"सौ मन्त्रों का मंत्र हिम्मत है। ये रुपये जगधर को दे देना, नहीं तो मेरी कुसल नहीं है!"
ठाकुरदीन-"रुपये क्यों दे दूँ, कोई लूट है? तुमने बाजी मारी है, तुमको मिलेंगे।"
नायकराम-“अच्छा सूरदास, ईमान से बता दो, सुभागी को किस मंत्र से बस में किया? अब तो यहाँ सब लोग अपने ही हैं, कोई दूसरा नहीं है। मैं भी कहीं कपा लगाऊँ।”
सूरदास ने करुण स्वर में कहा—"पण्डाजी, अगर तुम भी मुझसे ऐसी बातें करोगे, तो मैं मुँह में कालिख लगाकर कहीं निकल जाऊँगा। मैं पराई स्त्री को अपनी माता, बेटी, बहन समझता हूँ। जिस दिन मेरा मन इतना चंचल हो जायगा, तुम मुझे जीता न देखोगे।" यह कहकर सूरदास फूट-फूटकर रोने लगा। जरा देर में आवाज सँभालकर बोला-“भैरो रोज उसे मारता है। बिचारी कभी-कभी मेरे पास आकर बैठ जाती है। मेरा अपराध इतना ही है कि मैं उसे दुत्कार नहीं देता। इसके लिए चाहे कोई मुझे बद-