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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/१५५

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रंगभूमि


किसी दूसरे का उस पर कोई अखतियार नहीं है। अगर जमीन गई, तो उसके साथ मेरी जान भी जायगी।"

यह कहकर सूरदास उठ खड़ा हुआ और अपने झोपड़े के द्वार पर आकर नीम के नीचे लेट रहा।