पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२०२

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विनयसिंह छः महीने से कारागार में पड़े हुए हैं। न डाकुओं का कुछ पता मिलता है और न उन पर अभियोग चलाया जाता है। अधिकारियों को अब भी भ्रम है कि इन्हीं के इशारे से डाका पड़ा था। इसीलिए वे उन पर नाना प्रकार के अत्याचार किया करते हैं। जब इस नीति से काम नहीं चलता दिखाई देता, तो प्रलोभन से काम लेते हैं और फिर वही पुरानी नीति ग्रहण करने लगते हैं। विनयसिंह पहले अन्य कैदियों के राथ रखे गये थे, लेकिन जब उन्होंने अपराधियों को उनकी ओर बहुत आकृष्ट होते देखा, तो इस भय से कि कहीं जेल में उपद्रव न हो जाय, उन्हें सबसे अलग एक काल-कोठरी में बंद कर दिया। कोठरी बहुत तंग थी, एक भी खिड़की न थी, दोपहर को अँधेरा छाया रहता था, दुर्गन्ध इतनी कि नाक फटती थी। चौबीस घंटे में केवल एक बार द्वार खुलता, रक्षक भोजन रखकर फिर द्वार बंद कर देता। विनय को कष्ट सहने की बान पड़ गई थी, भूख-प्यास सह सकते थे, ओढ़न-बिछावन की उन्हें जरूरत न थी, इससे उन्हें कोई विशेष कष्ट न होता था; पर अंधकार और दुर्गन्ध उनके लिए बिलकुल नई सजा थी। भीतर उनका दम घुटने लगता था। निर्मल, स्वच्छ वायु में साँस लेने के लिए वह तड़प-तड़पकर रह जाते थे। ताजी हवा कितनी बहुमूल्य होती है, इसका अब उन्हें प्रत्यक्ष ज्ञान हो रहा था। किंतु दुर्व्यवहारों को सहते हुए भी वह दुःखी या भग्न-हृदय न होते थे। इन कठिन परीक्षाओं ही में उन्हें जाति का उद्धार दिखाई देता था। वह अपने मन में कहते थे-"यह कठिन व्रत निष्फल नहीं जा सकता। जब तक हम कठिनाइयाँ झेलना न सीखेंगे, जब तक हम भोग-विलास का परित्याग न करेंगे, हमसे देश का कुछ उपकार नहीं हो सकता।” यही विचार उन्हें धैर्य देता रहता था।

किंतु जब सोफिया की कलुषता की याद आ जाती, तो उनका सारा धैर्य, उत्साह और आत्मोत्सर्ग नैराश्य में विलीन हो जाता था। वह अपने को कितना ही समझाते कि सोफिया ने जो कुछ किया, विवश होकर किया होगा; पर इस युक्ति से उन्हें संतोष न होता था-"क्या सोफिया स्पष्ट नहीं कह सकती थी कि मैं विवाह नहीं करना चाहती? विवाह के विषय में माता-पिता की इच्छा हमारे यहाँ निश्चयात्मक है; लेकिन ईसाइयों में स्त्री की इच्छा ही प्रधान समझी जाती है। अगर सोफिया को क्लार्क से प्रेम न था, तो क्या वह उन्हें कोरा जवाब न दे सकती थी? यथार्थ में कोमल जाति का प्रेम-सूत्र भी कोमल होता है, जो जरा-से झटके से टूट जाता है। जब सोफिया-जैसी विचारशील, आन पर जान देनेवाली, सिद्धांत-प्रिय, उन्नत-हृदय युवती यों विचलित हो सकती है, तो दूसरी स्त्रियों से क्या आशा की जा सकती है। इस जाति पर विश्वास करना ही व्यर्थ है। सोफी ने मुझे सदा के लिए सचेत कर दिया, ऐसा पाठ हृदयंगम करा दिया, जो कभी न भूलेगा। जब सोफिया दगा कर सकती है, तो ऐसी कौन स्त्री