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रंगभूमि


का प्रयोग करके विनय को सहानुभूति प्राप्त करनी चाही थी; पर विनय मनोविज्ञान से इतने अनभिज्ञ न थे, उनकी चाल भाँप गये और बोले—"हमारा अनुमान था कि हम अपनो निःस्वार्थ सेवा से आपको अपना हम-दर्द बना लेंगे।"

दीवान साहब—"इसमें आपको पूरी सफलता हुई है। हम को आपसे हार्दिक सहानुभूति है, लेकिन आप जानते ही हैं कि रेजिडेंट साहब की इच्छा के विरुद्ध हम तिनका तक नहीं हिला सकते। आप हमारे ऊपर दया कीजिए, हमें इसी दशा में छोड़ दीजिए, हम-जैसे पतितों का उद्धार करने में आपको यश के बदले अपयश ही मिलेगा।"

विनय—"आर रेजिडेंट के अनुचित हस्तक्षेप का विरोध क्यों नहीं करते?"

दीवान साहब—"इसलिए कि हम आपकी भाँति निःस्पृह और निःस्वार्थ नहीं हैं। सरकार की रक्षा में हम मनमाने कर वसूल करते हैं, मनमाने कानून बनाते हैं, मनमाने दंड लेते हैं, कोई चूँ नहीं कर सकता। यही हमारी कारगुजारी समझी जाती है, इसी के उपलक्ष्य में हमको बड़ी-बड़ी उपाधियाँ मिलती है; पद की उन्नति होती है। ऐसी दशा में हम उनका विरोध क्यों करें?"

दीवान साहब की इस निर्लज्जता पर झुंँझलाकर पिन यसिंह ने कहा—"इससे तो यह कहीं अच्छा था कि रियासतों का निशान ही न रहता।"

दीवान साहब—"इसीलिए तो हम आपसे विनय कर रहे हैं कि अब किसी और प्रांत की ओर अपनी दया-दृष्टि कीजिए।"

विनय—"अगर मैं जाने से इनकार करूँ?”

दीवान साहब—"तो मुझे बड़े दुःख के साथ आपको उसी न्यायालय के सिपुर्द करना पड़ेगा, जहाँ न्याय का खून होता है।"

विनय—"निरपराध?"

दीवान साहब—"आप पर डाकुओं की सहायता का अपराध लगा हुआ है।"

विनय—"अभी आपने कहा है कि आपको मेरे विषय में ऐसो शंका नहीं।"

दीवान साहब—"वह मेरी निजी राय थी, यह मेरी राजकीय सम्मति है।"

विनय—"आपको अख्तियार है।"

विनयसिंह फिर मोटर पर बैठे, तो सोचने लगे-जहाँ ऐसे-ऐसे निर्लज्ज, अपनी अपकीर्ति पर बगलें बजानेवाले कर्णधार हैं, उस नौका को ईश्वर ही पार लगाये, तो लगे। चलो, अच्छा ही हुआ। जेल में रहने से माताजो को तसकीन होगी। यहाँ से नान बचाकर भागता, तो वह मुझसे बिलकुल निराश हो जाती। अब उन्हें मालूम हो जायगा कि उनका पत्र निकाल नहीं हुआ। चलूँ, अब न्यायालय का स्वाँग भी देख लूँ।

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