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रंगभूमि


घबराकर छोड़ बैठा। इंजियर के भाई डाक्टर होते हैं। रोगी चाहे मरता हो, पर फीस लिये बिना बात न सुनेंगे। फ़ीस के नाम से रिआयत भी करेंगे, तो गाड़ी के किराये और दवा के दाम में कस लेंगे। (हिसाब का परत दिखाकर) जरा इधर भी एक निगाह हो जाय।"

ताहिर-"सब मालूम है, तुमने गलत थोड़े ही लिखा होगा।"

ठाकुरदीन-"हजूर, ईमान है, तो सब कुछ है। साथ कोई न जायगा। तो मुझे क्या हुकुम होता है?"

ताहिर-“दो-चार दिन की मुहलत दो।"

ठाकुरदीन—“जैसी आपकी मरजी। हजूर, चोरी हो जाने से लाचार हो गया, नहीं तो दो-चार रुपयों की कौन बात थी। उस चोरी में तबाह हो गया। घर में फूटा लोटा तक न बचा। दाने को मुहताज हो गया हजूर! चोरों को आँखों के सामने भागते देखा, उनके पीछे दौड़ा। पागलखाने तक दौड़ता चला गया। अँधेरी रात थी, ऊँच-खाल कुछ न सूझता था। एक गढ़े में गिर पड़ा। फिर उठा। माल बड़ा प्यारा होता है। लेकिन चोर निकल गये थे। थाने में इत्तलाय की, थानेदारों की खुसामद की। मुदा गई हुई लच्छमी कहीं लौटती हैं। तो कब आऊँ?"

ताहिर-"तुम्हारे आने की जरूरत नहीं, मैं खुद भिजवा दूँगा।"

ठाकुरदीन-"जैसी आपकी खुसी, मुझे कोई उजर नहीं है। मुझे तगादा करते आप ही सरम आती है। कोई भलामानुस हाथ में पैसे रहते हुए टालमटोल नहीं करता, फौरन् निकालकर फेंक देता है। आज जरा पान लेने जाना था, इसीलिए चला आया था। सब न हो सके, तो थोड़ा-बहुत दे दीजिए। किसी तरह काम न चला, तब आपके पास आया। आदमी पहचानता हूँ हजूर, पर मौका ऐसा ही आ पड़ा है।"

ठाकुरदीन की विनम्रता और प्रफुल्लित सहृदयता ने ताहिरअली को मुग्ध कर दिया। तुरंत संदूक खोला और ५) निकालकर उसके सामने रख दिये। ठाकुरदीन ने रुपये उठाये नहीं, एक क्षण कुछ विचार करता रहा, तब बोला-"ये आपके रुपये हैं कि सरकारी रोकड़ के हैं?"

ताहिर—“तुम ले जाओ, तुम्हें आम खाने से मतलब कि पेड़ गिनने से?"

ठाकुरदीन—"नहीं मुंशीजी, यह न होगा। अपने रुपये हों, तो दीजिए, मालिक की रोकड़ हो, तो रहने दीजिए; फिर आकर ले जाऊँगा। आपके चार पैसे खाता हूँ, तो आपको आँखों से देखकर गढ़े में न गिरने दूँगा। बुरा मानिए, तो मान जाइए, इसकी चिंता नहीं, सफा बात करने के लिए बदनाम हूँ, आपके रुपये यों अलल्ले-तलल्ले खर्च होंगे, तो एक दिन आप धोखा खायेंगे। सराफत ठाट-बाट बढ़ाने में नहीं है, अपनी आबरू बचाने में है।"

ताहिरअली ने सजल-नयन होकर कहा-"रुपये लेते जाओ।"

ठाकुरदीन उठ खड़ा हुआ और बोला-"जब आपके पास हों, तब देना।"