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रंगभूमि


साहब ने अपने हितैषियों को इस स्थिति पर विचार करने के लिए आमंत्रित किया था। डॉक्टर गंगुली, जॉन सेवक, प्रभु सेवक, राजा महेंद्रकुमार और कई अन्य सजन आये हुए थे। इंदु भी राजा साहब के साथ आई थी और अपनी माता से बातें कर रही थी। कुँवर साहब ने नायकराम को बुला भेजा था और वह कमरे के द्वार पर बैठे हुए तंबाकू मल रहे थे।

महेंद्रकुमार बोले-"रियासतों पर सरकार का बड़ा दबाव है। वे अपंग हैं और सरकार के इशारे पर चलने के लिए मजबूर हैं।"

भरतसिंह ने राजा साहब का खंडन किया-"जिससे किसी का उपकार न हो और जिसके अस्तित्व का आधार ही अपकार पर हो, उमका निशान जितनी जल्द मिट जाय, उतना ही अच्छा। विदेशियों के हाथों में अन्याय का यंत्र बनकर जीवित रहने से तो मर जाना ही उत्तम है।"

डॉक्टर गंगुली-"वहाँ का हाकिम लोग खुद पतित है। डरता है कि रियासत में स्वाधीन विचारों का प्रचार हो जायगा, तो हम प्रजा को कैसे लूटेगा। राजा मसनद लगाकर बैठा रहता है, उसका नौकर-चाकर मनमाना राज करता है।"

जॉन सेवक ने पक्षपात-रहित होकर कहा-"सरकार किसी रियासत को अन्याय करने के लिए मजबूर नहीं करती। हाँ, चूँकि वे अशक्त हैं, अपनी रक्षा आप नहीं कर सकतीं, इसलिए ऐसे कामों में जरूरत से ज्यादा तत्पर हो जाती हैं, जिनसे सरकार के प्रसन्न होने का उन्हें विश्वास होता है।”

भरतसिंह-“विनय कितना नम्र, सुशील, सुधीर है, यह आप लोगों से छिपा नहीं। मुझे इसका विश्वास हो नहीं हो सकता कि उसकी जात से किसी का अहित हो सकता है।"

प्रभु सेवक कुँवर साहब के मुँह लगे हुए थे। अब तक जॉन सेवक के भय से न बोले थे; पर अब न रहा गया। बोले-"क्यों; क्या पुलिस से चोरों का अहित नहीं होता? क्या साधुओं से दुर्जनों का अहित नहीं होता? और फिर गऊ-जैसे पशु की हिंसा करनेवाले क्या संसार में नहीं हैं? विनय ने दलित किसानों की सेवा करनी चाही थी। उसी का यह उन्हें उपहार मिला है। प्रजा की सहन-शक्ति की भी कोई सीमा होनी चाहिए और होती है। उसकी अवहेलना करके कानून ही नहीं रह जाता। उस समय उस कानून को भंग करना ही प्रत्येक विचारशील प्राणी का कर्तव्य हो जाता है। अगर आज सरकार का हुक्म हो कि सब लोग मुँह में कालिख लगाकर निकलें, तो इस हुक्म की उपेक्षा करना हमारा धर्म हो जायगा। उदयपुर के दरबार का कोई अधिकार नहीं है कि वह किसी को रियासत से निकल जाने पर मजबूर करे।”

डॉक्टर गंगुली-"उदयपुर ऐसा हुक्म दे सकता है। उसको अधिकार है।"

प्रभु सेवक-"मैं इसे स्वीकार नहीं करता। जिस आज्ञा का आधार केवल पशु-बल हो, उसका पालन करना आवश्यक नहीं। अगर उदयपुर में कोई उत्तरदायिस्व-पूर्ण