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रंगभूमि


उस पर गिर पड़े। आप झोपड़ा रखिए ही क्यों! जनवाद आदर्श व्यवस्था न हो; पर संसार अभी उससे उत्तम कोई शासन-विधान नहीं निकाल सका है। खैर, जब यह सिद्ध हो गया कि हम दरबार पर कोई असर नहीं डाल सकते, तो सब करने के सिवा और क्या किया जा सकता है। मैं राजनीतिक विषयों से अलग रहना चाहता हूँ, क्योंकि उससे कोई फायदा नहीं। स्वाधीनता का मूल्य रक्त है। जब हममें उसके देने की शक्ति ही नहीं है, तो व्यर्थ में कमर क्यों बाँधे, पैतरे क्यों बदलें, ताल क्यों ठोंके? उदासीनता ही में हमारा कल्याण है।"

प्रभु सेवक—"यह तो बहुत मुश्किल है कि आँखों से अपना घर लुटते देखें, और मुँह न खोलें।"

भरतसिंह—"हाँ, बहुत मुश्किल है, पर अपनी वृत्तियों को साधना पड़ेगा। उसका यही उपाय है कि हम कुल्हाड़ी का बँट न बनें। बॅट कुल्हाड़ी की मदद न करे, तो कुल्हाड़ी कठोर और तेज होने पर भी हमें बहुत हानि नहीं पहुंचा सकती। यह हमारे लिए घोर लजा की बात है कि हम शिक्षा, ऐश्वर्य या धन के बल पर शासकों के दाहिने हाथ बनकर प्रजा का गला काटें और इस बात पर गर्व करें कि हम हाकिम हैं।"

जॉन सेवक—"शिक्षित-वर्ग सदैव से राज्य का आश्रित रहा है और रहेगा। राज्य विमुख होकर वह अपना अस्तित्व नहीं मिटा सकता।"

भरतसिंह—“यही तो सबसे बड़ी विपत्ति है। शिक्षित-वर्ग जब तक शासकों का आश्रित रहेगा, हम अपने लक्ष्य के जौ-भर भी निकट न पहुँच सकेंगे। उसे अपने लिए थोड़े, बहुत थोड़े दिनों के लिए कोई दूसरा ही अवलंब खोजना पड़ेगा।"

राजा महेंद्रसिंह बगले झाँक रहे थे कि यहाँ से खिसक जाने का कोई मौका मिल जाय। इस वाद-विवाद का अंत करने के इरादे से बोले—“तो आप लोगों ने क्या निश्चय किया? दरबार की सेवा में डेपुटेशन भेजा जायगा?"

डॉक्टर गंगुली—"हम खुद जाकर विनय को छुड़ा लायेगा।"

भरतसिंह—"अगर वधिक ही से प्राण-याचना करनी है, तो चुप रहना ही अच्छा। कम-से-कम बात तो बनी रहेगी।"

डॉक्टर गंगुली—“फिर वही Pessism का बात। हम विनय को समझाकर उसे यहाँ आने पर राजी कर लेगा।"

रानी जाह्नवी ने इधर आते हुए इस वाक्य के अंतिम शब्द सुन लिये। गर्व-सूचक भाव से बोलीं—"नहीं डॉक्टर गंगुली, आप विनय पर यह कृपा न कीजिए। यह उसकी पहली परीक्षा है। इसमें उसको सहायता देना उसके भविष्य को नष्ट करना है। वह न्याय-पक्ष पर है, उसे किसी से दबने की जरूरत नहीं। अगर उसने प्राण-भय से इस अन्याय को स्वीकार कर लिया, तो सबसे पहले मैं ही उसके माथे पर कालिमा का टीका लगा दूँगी।"

रानी के ओज-पूर्ण शब्दों ने लोगों को विस्मित कर दिया। ऐसा जान पड़ता था कि कोई देवी आकाश से यह संदेश सुनाने के लिए उतर आई है।