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रंगभूमि


है। विनय, यह ईश्वरीय विधान है, यह उसी को प्रेरणा है, नहीं तो इतना अपमान और उपहास सहकर तुम मुझे जिंदा न पाते।”

विनय ने सोफी के दिल की थाह लेने के लिए कहा—"अगर यह ईश्वरीय विधान है, तो उसने हमारे और तुम्हारे बीच में यह दीवार क्यों खड़ी कर दी है?"

सोफिया—"यह दीवार ईश्वर ने नहीं खड़ी की, आदमियों ने खड़ी की है।"

विनय—"कितनी मजबूत है।"

सोफिया—"हाँ, मगर दुर्भेद्य नहीं।”

विनय—"तुम इसे तोड़ सकोगी?"

सोफिया—"इसी क्षण, तुम्हारी आँखों के एक इशारे पर। कोई समय था, जब मैं उस दीवार को ईश्वर-कृत समझती थी और उसका सम्मान करती थी, पर अब उसका यथार्थ स्वरूप देख चुकी। प्रेम इन बाधाओं की परवा नहीं करता, यह दैहिक संबंध नहीं, आत्मिक संबंध है।"

विनय ने सोफ़ी का हाथ अपने हाथ में लिया, और उसकी ओर प्रेम-विह्वल नेत्रों से देखकर बोले—"तो आज से तुम मेरी, और मैं तुम्हारा हूँ।"

सोफ़ी का मस्तक विनय के हृदय-स्थल पर झुक गया और नेत्रों से जल-वर्षा होने लगी, जैसे काले बादल धरती पर झुककर एक क्षण में उसे तृप्त कर देते हैं। उसके मुख से एक शब्द भी न निकला, मौन रह गई। शोक की सीमा कंठावरोध है, पर शुष्क और दाह-युक्त; आनंद की सीमा भी कंठावरोध पर है, पर आद्र और शीतल। सोफी को अब अपने एक-एक अंग में, नाड़ियों की एक-एक गति में, आंतरिक शक्ति का अनुभव हो रहा था। नौका ने कर्णधार का सहारा पा लिया था। अब उसका लक्ष्य निश्चित था। वह अब हवा के झोको या लहरों के प्रवाह के साथ डॉवाडोल न होगी, वरन् व्यवस्थित रूप से अपने पथ पर चलेगी।

विनय भी दोनों पर खोले हुए आनंद के आकाश में उड़ रहे थे। वहाँ की वायु में सुगंध थी, प्रकाश में प्राण, किसी ऐसी-वस्तु का अस्तित्व न था, जो देखने में अप्रिय, सुनने में कटु, छूने में कठोर और स्वाद में कडुई हो। वहाँ के फूलों में काँटे न थे, सूर्य में इतनी उष्णता न थी, जमीन पर व्याधियाँ न थीं, दरिद्रता न थी, चिंता न थी, कलह न था, एक व्यापक शांति का साम्राज्य था। सोफिया इस साम्राज्य की रानी थी और वह स्वयं उसके प्रेम-सरोवर में विहार कर रहे ये। इस सुख-स्वप्न के सामने यह त्याग और तप का जीवन कितना नीरस, कितना निराशा-जनक था, यह अँधेरो कोठरी कितनी भयंकर?

सहसा क्लार्क ने फिर आकर कहा—“डार्लिङ्ग, अब विलंब न करो, बहुत देर हो रही है, सरदार साहब आग्रह कर रहे हैं। डॉक्टर इस रोगी की खबर लेगा।" सोफी उठ खड़ी हुई और विनय की ओर से मुँह फेरकर करुणा-कंपित स्वर में बोली—“घबराना नहीं, मैं कल फिर आऊँगी।"

विनय को ऐसा जान पड़ा, मानों नाड़ियों में रक्त सूखा जा रहा है। वह ममी-