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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२९९

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रंगभूमि


आयेगी। मजा तो जब है कि लिखित प्रार्थना-पत्र और जमानत की कोई शर्त ही न रहे। वह अवैध रूप से मुक्त कर दिये जायें। इसके सिवा कोई उपाय नहीं।"

राजभवन विद्युत्-प्रकाश से ज्योतिर्मय हो रहा था। भवन के बाहर चारों तरफ सावन की काली घटा थी और अथाह अंधकार। उस तिमिर-सागर में प्रकाशमय राज-भवन ऐसा मालूम होता था, मानों नीले गगन पर चाँद निकला हो।-सोफ़ी अपने सजे हुए कमरे में आईने के सामने बैठी हुई उन सिद्धियों को जगा रही है, जिनकी शक्ति अपार है—आज उसने मुद्दत के बाद बालों में फूल गूंथे हैं, फीरोजी रेशम की साड़ी पहनी है और कलाइयों में कंगन धारण किये हैं। आज, पहली बार उसने उन लालित्य-प्रसारिणी कलाओं का प्रयोग किया है, जिनमें स्त्रियाँ निपुण होती हैं। यह मंत्र उन्हीं को आता है कि क्योंकर केशों की एक तड़प, अंचल की एक लहर चित्त को चंचल कर देती है। आज उसने मिस्टर क्लार्क के साम्राज्यवाद को विजय करने का निश्चय किया है, वह आज अपनी सौंदर्य-शक्ति की परीक्षा करेगी।

रिम झिम बूँदें गिर रही थीं, मानों मौलसिरी के फूल झड़ रहे हों। बूंदों में एक मधुर स्वर था। रामभवन, पर्वत-शिखर के ऊपर, ऐसा मालूम होता था, मानों देवताओं ने आनंदोत्सव की महफील सजाई है। सोफिया प्यानो पर बैठ गई और एक दिल को मसोसनेवाला राग गाने लगी। जैसे ऊषा की स्वर्ण-छटा प्रस्फुटित होते ही प्रकृति के प्रत्येक अंग को सजग कर देती है, उसी भाँति सोफी की पहली ही तान ने हृदय में एक चुटकी-सी ली। मिस्टर क्लार्क आकर एक कोच पर बैठ गये और तन्मय होकर सुनने लगे, मानों किसी दूसरे ही संसार में पहुँच गये हैं। उन्हें कभी कोई नौका उमड़े हुए सागर में झकोले खाती नजर आती, जिस पर छोटी-छोटी सुंदर चिड़ियाँ मँडलाती थीं। कभी किसी अनंत वन में एक भिक्षुक, झोली कंधे पर रखे, लाठी टेकता हुआ नजर आता। संगीत से कल्पना चित्रमय हो जाती है।

जब तक सोफी गाती रही, मिस्टर क्लार्क बैठे सिर धुनते रहे। जब वह चुप हो गई, तो उसके पास गये और उसकी कुर्सी की बाँहों पर हाथ रखकर, उसके मुँह के पास मुँह ले जाकर बोले-"इन उँगलियों को हृदय में रख लूँगा।"

सोफी—"हृदय कहाँ है?"

क्लार्क ने छाती पर हाथ रखकर कहा—“यहाँ तड़प रहा है।"

सोफी—"शायद हो, मुझे तो विश्वास नहीं आता। मेरा तो खयाल है, ईश्वर ने तुम्हें हृदय दिया ही नहीं।"

क्लार्क—"संभव है, ऐसा ही हो। पर ईश्वर ने जो कसर रखी थी, वह तुम्हारे मधुर स्वर ने पूरी कर दी। शायद उसमें सृष्टि करने की शक्ति है।"

सोफी—"अगर मुझ में यह विभूति होती, तो आज मुझे एक अपरिचित व्यक्ति के सामने लजित न होना पड़ता।"

क्लार्क ने अधीर होकर कहा-"क्या मैंने तुम्हें लजित किया? मैंने!"