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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/३६९

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रंगभूमि

सुभागी—“उस पर मुझे विश्वास नहीं। आज ही मार मारकर बेहाल कर देगा।"

वकील—"हजूर, मुआमला साफ है, अब मजीद-सबूत की ज़रूरत नहीं रही। सूरदास पर जुर्म साबित हो गया।"

अदालत ने फैसला सुना दिया—"सूरदास पर २००) जुर्माना और जुर्माना न अदा करे, तो ६ महीने की कड़ी कैद। सुभागी पर १००) जुर्माना, जुर्माना न दे सकने पर ३ महीने की कड़ी कैद। रुपये वसूल हों, तो भैरो को दिये जायँ।”

दर्शकों में इस फैसले पर आलोचनाएँ होने लगी।

एक—"मुझे तो सूरदास बेकसूर मालूम होता है।"

दूसरा—“सब राजा साहब की करामात है। सूरदास ने जमीन के बारे में उन्हें बदनाम किया था न! यह उसी की कसर निकाली गई है। ये हमारे यश-मान-भोगी लीडरों के कृत्य हैं।"

तीसरा—"औरत चरबाँक नहीं मालूम होती।"

चौथा—"भरी अदालत में बातें कर रही है, चरवाँक नहीं, तो और क्या है?"

पाँचवाँ—"वह तो यही कहती है कि मैं भैरो के पास न रहूँगी।"

सहसा सूरदास ने उच्च स्वर से कहा—"मैं इस फैसले की अपील करूँगा।"

वकील—"इस फैसले की अपील नहीं हो सकती।"

सूरदास—“मेरी अपील पंचों से होगी। एक आदमी के कहने से मैं अपराधी नहीं हो सकता, चाहे वह कितना ही बड़ा आदमी हो। हाकिम ने सजा दे दो, सजा काट लूँगा; पर पंचों का फैसला भी सुन लेना चाहता हूँ।"

यह कहकर उसने दर्शकों की ओर मुँह फेरा और मर्मस्पर्शी शब्दों में कहा—“दुहाई है पंचो, आप इतने आदमी जमा हैं। आप लोगों ने भैरो और उसके गवाहों के बयान सुने, मेरा और सुभागी का बयान सुना, हाकिम का फैसला भी सुन लिया। आप लोगों से मेरी बिनती है कि क्या आप भी मुझे अपराधी समझते हैं? क्या आपको विस्वास आ गया कि मैंने सुभागी को बहकाया और अब अपनी स्त्री बनाकर रखे हुए हूँ? अगर आपको बिस्वास आ गया है, तो मैं इसी मैदान में सिर झुकाकर बैठता हूँ, आप लोग मुझे पाँच-पाँच लात मारें। अगर मैं लात खाते-खाते मर भी जाऊँ, तो मुझे दुःख न होगा। ऐसे पापी का यही दंड है। कैद से क्या होगा! और अगर आपकी समझ में बेकसूर हूँ, तो पुकारकर कह दीजिए, हम तुझे निरपराध समझते हैं। फिर मैं कड़ी-से-कड़ी कैद भी हँसकर काट लूँगा।"

अदालत के कमरे में सन्नाटा छा गया। राजा साहब, वकील, अमले, दर्शक, सब-के-सब चकित हो गये। किसी को होश न रहा कि इस समय क्या करना चाहिए। सिपाही दर्जनों थे, पर चित्र-लिखित-से खड़े थे। परिस्थिति ने एक विचित्र रूप धारण कर लिया था, जिसकी अदालत के इतिहास में कोई उपमा न थी। शत्रु ने ऐसा छापा मारा था कि उससे प्रतिपक्षी सेना का पूर्व-निश्चित क्रम भंग हो गया।