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रंगभूमि


अपने जीवन के उद्देश्य पर एक व्याख्यान देती-हम भाग्य के दुखड़े रोने के लिए, अपनी अवनत दशा पर आँसू बहाने के लिए नहीं बनाये गये हैं।”

समा बँधा हुआ था, सोफिया के हृदय की आँखों के सामने इन्हीं भावों के चित्र नृत्य करते हुए मालूम होते थे।

अभी संगीत की ध्वनि गूँज ही रही थी कि अकस्मात् उसी अहाते के अन्दर एक खपरैल के मकान में आग लग गई। जब तक लोग उधर दौड़ें, अग्नि की ज्वाला प्रचंड हो गई। सारा मैदान जगमगा उठा। वृक्ष और पौदे प्रदीप्तप्रकाश के सागर में नहा उठे। गानेवालों ने तुरंत अपने-अपने साज वहीं छोड़े, धोतियाँ ऊपर उठाई, आस्तीनें चढ़ाई और आग बुझाने दौड़े। भवन से और भी कितने ही युवक निकल पड़े। कोई कुएँ से पानी लाने दौड़ा, कोई आग के मुँह में घुसकर अंदर की चीजें निकाल-निकालकर बाहर फेकने लगा। लेकिन कहीं वह उतावलापन, वह घबराहट, वह भगदड़, वह कुहराम, वह 'दौड़ो दौड़ो' का शोर, वह स्वयं कुछ न करके दूसरों को हुक्म देने का गुल न था; जो ऐसी दैवी आपदाओं के समय साधारणतः हुआ करता है। सभी आदमी ऐसे सुचारु और सुव्यवस्थित रूप से अपना-अपना काम कर रहे थे कि एक बूंद पानी भी व्यर्थ न गिरने पाता था, और अग्नि का वेग प्रतिक्षण घटता जाता था, लोग इतनी निर्भयता से आग में कूदते थे, मानों वह जलकुंड है।

अभी अग्नि का वेग पूर्णतः शांत न हुआ था कि दूसरी तरफ से आवाज आई- "दौड़ो दौड़ो, आदमी डूब रहा है।" भवन के दूसरी ओर एक पक्की बावली थी, जिसके किनारे झाड़ियाँ लगी हुई थीं, तट पर एक छोटी-सी नौका खूँटे से बँधी हुई पड़ी थी। आवाज सुनते ही आग बुझानेवाले दल से कई आदमी निकलकर बावली की तरफ लपके, और डूबनेवाले को बचाने के लिए पानी में कूद पड़े। उनके कूदने की आवाज 'धमः! धम!' सोफिया के कानों में आई। ईश्वर का यह कैसा प्रकोप कि एक ही साथ दोनों प्रधान तत्त्वों में यह विप्लव! और एक ही स्थान पर! वह उठकर बावली की ओर जाना ही चाहती थी कि अचानक उसने एक आदमी को पानी का डोल लिये फिसलकर जमीन पर गिरते देखा। चारों ओर अग्नि शांत हो गई थी; पर जहाँ वह आदमी गिरा था, वहाँ अब तक बड़े वेग से धधक रही थी। अग्नि-ज्वाला विकराल मुँह खोले उस अभागे मनुष्य की तरफ लपकी। आग की लपटें उसे निगल जाती; पर सोफिया विद्युत्-गति से ज्याला की तरफ दौड़ी, और उस आदमी को खींचकर बाहर निकाल लाई। यह सब कुछ पल-मात्र में हो गया, अभागे की जान बच गई, लेकिन सोफिया का कोमल गात आग की लपट से झुलस गया। वह ज्वालों के घेरे से बाहर आते ही अचेत होकर जमीन पर गिर पड़ी।

सोफिया ने तीन दिन तक आँखें नहीं खोलीं। मन न जाने किन लोकों में भ्रमण किया करता था। कभी अद्भुत, कभी भयावह दृश्य दिखाई देते। कभी ईसा की सौम्य